इंसानों के देवी-देवता सब अपना कोई न कोई वाहन रखते हैं। लक्ष्मी के पास उल्लू है, सरस्वती के पास हंस है, गणेश के पास चूहा है, दुर्गा शेर पर बैठती हैं। बस, ये सब पशु-पक्षी हमारे देवता ही हुए न. हमारे ये साथी देवताओं से कम महिमामय थोड़े ही हैं। तुम इन्हें पुकार कर तो देखो, ये अवश्य आयेंगे। तुम्हारी तपस्या से प्रसन्न होंगे। यह कह कर बख्तावर तालाब की ओर बढ़ गया।
लाजवंती की आँखें ख़ुशी से चमकने लगीं।
बस, लाजो ने वहीँ धूनी रमा ली। न खाना, न पीना, दिनरात तपस्या करने लगी। आँखें बंद कीं ,और जपने लगी- "लक्ष्मीवाहन जयजयकार , गणपतिमूषक यहाँ पधार".
कई दिन तक भूखी-प्यासी लाजो तप में लीन रही , और एक दिन उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर एक विशालकाय चूहा वहां अवतरित हुआ।
- आँखें खोलो बालिके!
लाजो के हर्ष का पारावार न रहा। मूषकराज को देख कर वह हर्ष विभोर हो गई। वह ये भी भूल गई कि वह कई दिन की भूखी-प्यासी है। उसकी दृष्टि मूषकराज से हटती ही न थी। चूहे ने कहा, हम तुम्हारी पूजा से प्रसन्न हुए। मांगो, तुम्हें क्या माँगना है?
-भगवन, मैं एक अभागन लोमड़ी हूँ। वर्षों से सभी मुझे चालाक, धूर्त और मक्कार समझते हैं। मुझे ऐसा वरदान दीजिये, कि मेरी दृष्टि निर्मल हो जाये। मुझे भी सब आदरणीय मानें, सब मेरी इज्ज़त करें।
मूषकराज बोले- बहुत अच्छा विचार है। किन्तु देवी, इस युग में बिना श्रम किये किसी को कुछ मिलने वाला नहीं है। केवल भक्ति, चापलूसी या सिफारिश से काम नहीं चलने वाला। तुम्हें स्वयं इसके लिए एक उपाय करना होगा।
- वो क्या भगवन !
- तुम्हें सभी जंगल-वासियों के बीच बारी-बारी से जाना होगा। उनकी सेवा करनी होगी। सब पशु-पक्षियों पर खराब छवि का जो कलंक लगा है, उसे मिटाना होगा। तब तुम्हारी छवि स्वयं पावन और स्वच्छ हो जायेगी। सब तुम्हें सराहेंगे, तुम्हारा सम्मान करेंगे। हाँ, किन्तु यह ध्यान रखना, कि उनके पास से लौटते समय रास्ते में कोई गीत तुम बिलकुल मत गाना, नहीं तो तुम्हारा सारा तप निष्फल हो जाएगा। तथास्तु !
यह कह कर चूहा पास के एक बिल में समा गया। [जारी]
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