कुछ ही दिनों में डेला और उसकी मित्र-मण्डली ने बफलो का कोना-कोना छान मारा. शहर के कई स्थानों की आकर्षक फोटोग्राफी कर के मेहमानों ने अपनी यात्रा की स्मृतियों को सजाने का भी अच्छा बंदोबस्त कर लिया. किन्जान और पेरिना ने उन्हें एक दिन अपने हनीमून- ट्रिप पर की गई आश्रम की यात्रा के बारे में भी बताया. वर्षों पहले ज़लज़ले में नेस्तनाबूद हुए आश्रम की दिलचस्प कहानी और बाद में संयोगवश मिली डायरी के बारे में डेला उन्हें पहले भी बता चुकी थी।
एक शाम जब वे लोग डिनर के बाद रंगीन झिलमिलाते झरने के किनारे बगीचे में बैठे ताजगी भरे आलम का आनंद ले रहे थे, इस बात पर अच्छी -खासी बहस ही छिड़ गई कि क्या मृत्यु के बाद किसी भी व्यक्ति का वापस दुनिया में आकर आत्मा के रूप में भटकना कोई हकीकत हो सकती है या फिर यह दिमागी फितूर, भ्रम, मनोरंजन मात्र ही है। किन्जान ने इस प्रश्न पर लगभग मौन ही रखा। लेकिन उसे यह जान कर बेहद आश्चर्य हुआ कि उनके मेहमानों के तरकश में भी ऐसे अनुभवों के कई तीर हैं, जब किसी ने मृत व्यक्ति की उपस्थिति को किसी न किसी रूप में अनुभव किया।
चुम ने बताया कि उसकी तो कई बार विपत्ति के क्षणों में ऐसी आत्माओं ने मदद की है। उसका कहना था कि ये आत्माएं केवल अच्छी वृत्तियाँ ही होती हैं, और ये लोगों की मदद ही करती हैं। ये प्राय बड़े और महान लोग ही होते हैं जो दुनियां से जाने के बाद भी दुनियां में दखल देने की शक्ति रखते हैं। उसे ऐसा कोई अनुभव नहीं था, जब किसी असहाय या पीड़ित व्यक्ति को मरने के बाद दुनियां में घूमते देखा गया हो.
युवान की इस बात ने सबको चौंका दिया कि उसे तैराकी के कठिन दिनों में कई बार पारलौकिक शक्तियों द्वारा सहायता किये जाने का अहसास हुआ है। सना और सिल्वा की दिलचस्पी इन बातों को सुनने तक सीमित थी, उनके पास कहने के लिए कुछ नहीं था। और सबसे बड़ा अचम्भा तो सभी को यह जान कर हुआ कि इस पूरी बातचीत के दौरान वुडन पास के लॉन पर गहरी नींद में सोते पाए गए, और उन्होंने किसी की बात का एक लफ्ज़ भी नहीं सुना।
युवान ने दिलचस्प वाकया सुनाया। वह तब केवल चौदह साल का था, जब एक गहरी जंगली नहर में तैरते हुए वह पानी में काई-भरी झाड़ियों में फंस गया, और बहुत देर चिल्लाने के बाद भी उसे किसी तरह की कोई मदद नहीं मिली। तभी मटमैले पानी में उसने एक बड़ी सी मछली को अपनी ओर आते देखा। नुकीली दन्त-पंक्ति और काँटों से भरी देह वाली इस खूंखार मछली को अपनी ओर आते देख युवान की चीख ही निकल गई, लेकिन युवान ने साफ देखा कि यह मछली अपने काँटों से झाड़ियों को सुलझाती हुई युवान का रास्ता बना कर इस तरह निकल गई कि उसके शरीर को एक खरोंच तक नहीं आई। बाद में उसके मित्रों ने कहा कि वह झाड़ियों को खाने वाली कोई शाकाहारी मछली हो सकती है, किन्तु युवान का दिल जानता था कि भय से मरणासन्न अवस्था में आ जाने वाले क्षणों में मछली उसे देव-दूत की भांति नज़र आती रही ...धीरे से युवान ने यह भी बताया कि उस मछली की आँख का अक्स आज तक उसके दिमाग में दर्ज है।..[जारी...]
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