जबरन एक बहुत असरदार शब्द है। इसका अर्थ है- जबरदस्ती। सरल शब्दों में कहें तो यह एक ऐसी क्रिया है, जिससे कोई व्यक्ति वह कार्य करता है, जो हो न रहा हो। अर्थात जो कुछ घट न पा रहा हो, उसे बलपूर्वक संपन्न कर देना 1
जैसे उदाहरण के लिए प्रहरियों द्वारा रोके जाने पर भी शाहरुख़ खान वानखेड़े स्टेडियम में प्रविष्ट हो जाएँ। प्रविष्ट न हो पाने की दशा में गालियाँ देने का आम-तौर पर रिवाज़ है। अब ख़ास लोग आम-रिवाजों का कितना पालन करें, यह अलग चिंतन का विषय है।
हमारे देश में एक रिवाज़ और है। यहाँ तमाम यांत्रिक सुविधाओं व वैज्ञानिक दृष्टिकोण के बावजूद यह पहले से पता नहीं लग पाता कि कल मौसम कैसा रहेगा। अतः जब मौसम बिगड़ कर सामने आता है तो जनता-जनार्दन के पास गाली देने के अलावा और कोई विकल्प शेष नहीं रहता।
हो सकता है कि देश को कल फिर कुछ गालियाँ सुननी पड़ें। जब रात को सोते हुए आदमी का खून कोई मच्छर जबरन पी जाता है तो आदमी नींद में भी गालियाँ बुदबुदाता पाया जाता है। तो फिर अगर जागते हुए पूर्व महामहिम नारायण दत्त तिवारी का खून कोई डाक्टर 'जबरन' ले जायेगा, तो सोचिये, क्या होगा?
इससे भी बड़ा सवाल तो ये है कि अगर डाक्टर खून को देख कर 'यूरेका-यूरेका' [मिल गया-मिलगया] चिल्ला पड़ा तो क्या 'जबरन' वाली सारी धाराएँ बेचारे तिवारीजी पर लगेंगी? बड़ा खराब कानून है!
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