Sunday, November 27, 2011

हे ईश्वर,उन्हें शक्ति देना कि वे बिना बात लड़ सकें

हर खेल को शुरू होने के लिए एक सीटी अर्थात व्हिसिल चाहिए. हर मैच को शुरू होने के लिए दो टीमें चाहिए. पर अगर कोई पहलवान अपनी ही नाक तोड़ना चाहे, तो उसे केवल एक मक्खी चाहिए.
लेकिन अगर कोई देश लड़ना चाहे, तो उसे मुद्दा चाहिए. अगर कोई कारगर मुद्दा न हो तो फिर कोई ज़मीन चाहिए. ज़मीन अगर अपनी हो तो लड़ाई में मज़ा नहीं आता. ज़मीन दूसरे की हो तो भी खतरा बना रहता है, न जाने दूसरे के पास क्या हथियार हो?
सबसे मज़ेदार लड़ाई तो तब होती है जब ज़मीन तीसरे की हो. और अगर तीसरा कम शक्तिशाली हो, तब तो सोने पर सुहागा. लड़ने की हुड़क भी पूरी, और लड़ाई में जीत भी पक्की.
पर यहाँ भी एक पेच तो है. कम शक्तिशाली भला लड़ाई छेड़ने का खतरा मोल ही क्यों लेगा? तो यहाँ भी उसे उकसाने के लिए कुछ न कुछ तो करना ही  पड़ेगा.
कहते हैं कि एक आदमी लड़ने में बहुत पारंगत था. रोज किसी न किसी बात पर किसी न किसी से लड़ लेता था. आखिर लोगों ने उस से बचने का रास्ता निकाला. उसकी बीवी से कहा कि रात को सोने के लिए इसकी खाट खेत में ऐसी जगह डालना,जहाँ दूर-दूर तक कोई न हो. बीवी ने ऐसा ही किया. जब वह अकेला पड़ा-पड़ा आसमान को तक रहा था, अचानक उसे आकाश में तारों का झुण्ड दिखाई दिया. वह पत्नी से बोला- यह तारों का झुण्ड सा क्या है? पत्नी बोली- यह आकाश गंगा है, यहाँ रोज़ इन्द्र के हाथी पानी पीने के लिए आते हैं. बस, आदमी का पारा चढ़ गया, बोला- तूने हाथियों के रास्ते में खाट  डालदी, कोई हाथी यहाँ गिर गया तो? बस, उसकी लड़ाई शुरू.
आदमी ही नहीं, ऐसा देश भी करते हैं.
भारत में एक कार्यक्रम में शिरकत करने तिब्बत से दलाई लामा आरहे हैं.जब चीन को यह खबर मिली, तो उसने भारत से कहा- इस कार्यक्रम को रद्द करो.
भारत ने कहा- नहीं.    

3 comments:

  1. सार्थक और सामयिक प्रस्तुति, आभार.

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  2. सही बात है। काश हमारा भारत इस "नहीं" से भी दो कदम आगे बढकर अपना मुक़ाम हासिल कर पाता।

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