दोनों देशों को शुभकामनायें देने का यह अर्थ कदापि न निकाला जाये कि दोनों के बीच कोई घमासान, विवाद या अनबन की आशंका है. अभी ऐसा कुछ भी नहीं है. भगवान करे ऐसा कभी कुछ भी न हो.
और यदि ऐसी किसी आशंका के चलते शुभकामनायें दी भी जाएँगी तो किसी एक को ही दी जाएँगी न? किसी झगड़े में दोनों को जीतने की दुआ भला कौन देता है? हाँ, केवल एक ही स्थिति में दोनों पक्षों को जीतने का आशीर्वाद दिया जाता है. केवल तब, जब लड़ने वाले दोनों सगे भाई हों, और आशीर्वाद देने वाले बूढ़े माँ-बाप.
फिर यहाँ तो कोई झगड़ा है भी नहीं.इसलिए इन शुभकामनाओं का लड़ाई-झगड़े से कोई लेना-देना नहीं है.
असल में बात यह है कि कुछ लोग बात-बात में चीन और भारत को कोसते हैं, इन दोनों देशों की जनसँख्या को लेकर. जब भी विकास की बात आती है तो ये लोग मानते हैं कि इन दोनों देशों में सारी समस्याओं का कारण इनकी ज्यादा जनसँख्या ही है.अभी जब विश्व की जनसँख्या सात अरब के पार पहुंची, तो फिर कई लोगों ने चीन और भारत को हिकारत की नज़र से देखा. क्योंकि संसार की कुल जनसँख्या का पैंतीस प्रतिशत से अधिक हिस्सा तो इन्हीं दोनों के खाते में है. मानव संसाधन के इस आधिक्य को दुनिया की उन्नति में रोड़ा बताया जा रहा है.
यह ठीक है कि जनसँख्या पर नियंत्रण होना ही चाहिए, मगर केवल जनसँख्या ही सब समस्याओं की जड़ है, ऐसा मानने वालों को [जिनमें अक्सर मैं खुद भी शामिल हो जाता हूँ] एक और तथ्य पर ध्यान देना चाहिए.
दुनियां में अगर किसी धरती पर जनाधिक्य है, तो वह सबसे ज्यादा सिंगापूर में है. एक किलोमीटर के दायरे में सात हज़ार से ज्यादा लोग वहां रहते हैं. जनसँख्या का यह सर्वाधिक घनत्व सिंगापूर को सर्वाधिक सम्पन्न, विकसित और आधुनिक होने से नहीं रोक पाया है. यदि इस उदाहरण से भारत और चीन कोई प्रेरणा लेना चाहें तो दोनों को ही हार्दिक शुभकामनायें.
आपकी बात सही है। टोक्यो के रेलवे स्टेशनों पर जैसी भीड़ दिखी वैसी न मुम्बई में देखी न न्यूयॉर्क में, मगर ग़ज़ब का अनुशासन था। लेकिन उन्हीं के हवाई अड्डे पर लाइन तोडने वालों के हाथ में चीन और उत्तर कोरीया के पासपोर्ट भी देखे। देश चलाना एक जटिल काम है जिसे हारवर्ड या लण्डन स्कूल ऑफ़ इकॉनोमिक्स में पढने/पढाने भर से नहीं सीखा जा सकता। अपने विचार को प्रस्तुत करने का आपका तरीका बहुत रोचक और अलग है, यह बात बार-बार कहना चाहता हूँ।
ReplyDeleteबिल्कुल सही कहा आपने और हमने अपने अंदर की संभावनाओं को खंगालना बंद कर दिया है।
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