रुपया लगातार गिर रहा है. इसका अर्थ या व्याख्या अर्थशास्त्र में चाहे जो हो, भारतीय समाजशास्त्र में इसकी व्याख्या निराशा का माहौल बना रही है. हर भारतीय के मानस में यह ख्याल आ रहा है कि जिसके लिए हमेशा से हम 'गिरते' चले जा रहे हैं, वह खुद भी गिर रहा है?
यदि एक दूसरे के लिए गिरते चले जाने की यह चेन ऐसे ही चलती रही, तो आखिर हम कौन से रसातल में पहुंचेंगे? क्या कोई रास्ता है जो इस गिरावट को थामे?
रास्ता है.
रास्ता यही है, कि पहले हम अपने-आप को थामें.आज हम अपने हर कार्य को आर्थिक सार्थकता के दायरे में ही घसीट कर ले गए हैं. हम अपने काम के स्तर,गुणवत्ता, आवश्यकता, उपयोगिता आदि को भूल कर केवल 'मौद्रिक' लाभ या लाभदायकता के पैमाने से ही हर चीज़ को आंकने लगे हैं.ज्ञान से हमें कोई लेना-देना नहीं, हम वह पढ़ना चाहते हैं, जो हमें ऊंचा आर्थिक पॅकेज दिला सके.हमारे बड़े और आधुनिक सुविधा संपन्न हस्पताल खांसी-जुकाम के मरीज़ को कैंसर के मरीज़ से ज्यादा महत्त्व देने को तैयार हो जाते हैं, अगर वह पैसे वाला हो. हमारा मीडिया जनता पर बरसों से पड़ रही मंहगाई की मार को नज़रंदाज़ करके नेता को पड़े एक थप्पड़ पर अपने कैमरे साध देता है.
पहले हम उठें, शायद हमारे राष्ट्रीय जीवन की गुणवत्ता फिर रूपये को उठाने पर भी ध्यान दे.
लक्ष्मी के चरणों में अगर हम अपना अच्छा-बुरा भूल कर लोटते रहेंगे तो आखिर कभी तो हमें उठाने को लक्ष्मी भी झुकेगी ही न ?
यदि एक दूसरे के लिए गिरते चले जाने की यह चेन ऐसे ही चलती रही, तो आखिर हम कौन से रसातल में पहुंचेंगे? क्या कोई रास्ता है जो इस गिरावट को थामे?
रास्ता है.
रास्ता यही है, कि पहले हम अपने-आप को थामें.आज हम अपने हर कार्य को आर्थिक सार्थकता के दायरे में ही घसीट कर ले गए हैं. हम अपने काम के स्तर,गुणवत्ता, आवश्यकता, उपयोगिता आदि को भूल कर केवल 'मौद्रिक' लाभ या लाभदायकता के पैमाने से ही हर चीज़ को आंकने लगे हैं.ज्ञान से हमें कोई लेना-देना नहीं, हम वह पढ़ना चाहते हैं, जो हमें ऊंचा आर्थिक पॅकेज दिला सके.हमारे बड़े और आधुनिक सुविधा संपन्न हस्पताल खांसी-जुकाम के मरीज़ को कैंसर के मरीज़ से ज्यादा महत्त्व देने को तैयार हो जाते हैं, अगर वह पैसे वाला हो. हमारा मीडिया जनता पर बरसों से पड़ रही मंहगाई की मार को नज़रंदाज़ करके नेता को पड़े एक थप्पड़ पर अपने कैमरे साध देता है.
पहले हम उठें, शायद हमारे राष्ट्रीय जीवन की गुणवत्ता फिर रूपये को उठाने पर भी ध्यान दे.
लक्ष्मी के चरणों में अगर हम अपना अच्छा-बुरा भूल कर लोटते रहेंगे तो आखिर कभी तो हमें उठाने को लक्ष्मी भी झुकेगी ही न ?
सामयिक और सार्थक प्रस्तुति, आभार.
ReplyDeletedhanywad shuklaji, utsahvardhan karte rahiye.
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