सूरज और चन्द्रमा ग्रह हैं, इंसान नहीं. और इस बात के लिए ईश्वर को लाख-लाख धन्यवाद. दुनिया बनाते समय ईश्वर के पास कोई अनुमोदित ब्ल्यू-प्रिंट तो था नहीं. यह भी हो सकता था कि आसमान में घूमने का काम भी इंसान ही करें. सूरज और चन्द्रमा होते ही नहीं. और होते भी तो उन्हें कोई और काम दे दिया जाता. हो सकता है कि वे किसी शॉपिंग माल के वाचमेन होते.
और तब हमें कभी भी सुनने को मिलता कि आज सूरज ने किसी से पैसे ले लिए और वह उत्तर से उग गया. आज चाँद बीमारी का बहाना बना कर काम पे नहीं आया, इसलिए रात अँधेरी है.
निदा फाजली के अनुसार जो यहाँ है, वही वहां भी है.
कभी किसी ने कहा था कि खेल को खेल की भावना से खेलो. शायद खेल की भावना यही है कि खेल में भी "खेल" खेलो?
क्या टूथ-पेस्ट की ट्यूब से निकला मंजन वापस ट्यूब में डाला जा सकता है? क्या किसी स्टेडियम में बैठे हजारों दर्शकों की रोमांच भरी तालियों की गड़गड़ाहट को चंद सालों के बाद वापस 'पिन ड्रॉप साइलेंस' में बदला जा सकता है? अरे, ये तो बहुत दूर की बात है, नोटों की वो गड्डियां ही उन जेबों से कोई निकाल कर बताये, जिनके लिए ये सारा खेल रचा जाता है.
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