Friday, November 25, 2011

हरिश्चंद्र, मोहन दास और प्रणब मुखर्जी के 'अनुभूत' प्रयोग

यदि हमें किसी को यह समझाना हो कि 'सच' किसे कहते हैं,तो हम बहुत आसानी से समझा सकते हैं."सच झूठ का विलोम है जो तब बोला जाता है जब और कोई चारा न हो". यह कभी-कभी स्वतः ही बुल जाता है जबकि झूठ सायास बोलना पड़ता है. हर इन्सान की एक अंतरात्मा होती है, जिसके फलस्वरूप यह सत्य  कभी-कभी स्वयं मुंह से निकल जाता है. भारत के हर न्यायालय में 'सत्यमेव जयते' लिखा होने से प्राय यह मान लिया जाता है कि यह जीतता होगा, किन्तु इस मान्यता की सत्यता का कोई ठोस आधार नहीं है.
हरिश्चंद्र ने सत्य बोला था, जिसके कारण वह 'सत्यवादी' कहलाये. महात्मा मोहनदास करमचंद गाँधी ने सत्य के कुछ अनुभूत प्रयोग किये.
प्रणब मुखर्जी दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र  के वित्त मंत्री होने के कारण व्यस्त रहते हैं, किन्तु उनसे भी अकस्मात सच बुल ही गया.अकस्मात किसी से भी, कुछ भी हो सकता है. अन्ना हजारे के मुख  से भी शरद पवार के थप्पड़ पड़ने की शर्मनाक-निंदनीय घटना के बाद एक बार तो यही निकला-'एक ही".
सत्ताधारी पार्टी के 'स्टीयरिंग व्हील' पर बैठे नेता मनमोहन सिंह के मुख से कभी कुछ नहीं निकलता, लेकिन प्रणब मुखर्जी के मुंह से निकल गया. आखिर  वह बोल ही पड़े- 'यह देश न जाने किधर जा रहा है?
गाँधी ने कहा था कि यदि कोई तुम्हारे एक गाल पर थप्पड़ मारे तो तुम अपना दूसरा गाल भी उसके आगे कर दो.देखें, अब गाँधी की  प्रासंगिकता कितनी बची है?   

3 comments:

  1. dekhiye kaise din aa gaye ki chintan ke liye bhi 'thappad' jaise vishay mil rahe hain. is desh ki janta to yah khati hi rahi hai, ab...

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  2. @यह देश न जाने किधर जा रहा है?

    किधर जाएगा वह देश जिसकी गाड़ी के पहियों से इतने भारी नेता बन्धे हों?

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