Friday, May 24, 2013

हम इतने महान कैसे बने? [तीन]

राज्य का खज़ाना खाली होते देख राजा चिंतित हो गया। उसने प्रधान मंत्री से मंत्रणा की। प्रधान मंत्री ने कहा- आप बिलकुल चिंता न करें, इस समस्या का समाधान मुझ पर छोड़ दें।
अगले दिन प्रधान मंत्री ने घोषणा करवा दी कि  जिन लोगों ने भी महल में अपने  कबूतर दिए हैं, वे रोज़ दो-दो मोहरें उन कबूतरों के दाने-पानी के लिए महल में जमा कराएं, जिनका कबूतर इसके अभाव में मर गया उन्हें भारी दंड चुकाना होगा।
देखते-देखते शाही खजाने में अपार दौलत आने लगी, पर जनता इस रोज के दंड से त्राहि-त्राहि करने लगी।राजा का दिल प्रजा के कष्ट से पसीज गया।
राजा ने राजपुरोहित से मशविरा किया। राजपुरोहित ने कहा- प्रजा को कष्ट से बचाने  का एक ही रास्ता है, आप जनता के ऊपर लगाया गया कर-भार माफ़ करदें, किन्तु बिना किसी कारण से जनता को राहत देने से वह अकर्मण्य और नाकारा हो जाएगी, इसलिए  बेहतर होगा कि  यह लाभ जनता को किसी ख़ास मौके पर मिले।
राजा को यह बात जँची, लेकिन सवाल ये था कि  ख़ास मौका  क्या हो? राजपुरोहित ने इसका भी उपाय बता दिया- बोला- आप अपने पुत्र को राजा बना दें, और उसके राजतिलक के शुभ अवसर पर जनता को यह तोहफा देदें।
राजा चिंता में पड़  गया।    

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हम मेज़ लगाना सीख गए!

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