भारत का सिनेमा अपने सौ साल पूरे होने का जश्न मना रहा है। कुछ अति-उत्साही लोग सौ सालों की उपलब्धियों को इतिहास में दर्ज कर देने की महत्वाकांक्षा भी पाले हुए हैं। यह अस्वाभाविक नहीं है।
फिर अस्वाभाविक या ग़लत क्या है?
गलत है वह तरीका, जिससे इन उपलब्धियों को आंकने का काम हो रहा है। एक मशहूर साइट ने पिछले सौ सालों की ३८ अभिनेत्रियों के चित्र उनके संक्षिप्त परिचय के साथ पाठकों को "वोटिंग" के लिए परोस दिए हैं। एक जगह कुछ चुनिन्दा फिल्मों पर लोगों की राय 'शताब्दी की सर्वश्रेष्ठ फिल्म' के रूप में मांगी गई है।
इन प्रयासों के जो परिणाम आयेंगे, उनकी कसौटी तो बाद में होगी, अभी उनका नामांकन-चयन ही पूरी तरह निष्पक्ष नहीं कहा जा सकता।
क्षमा करें, "जॉनी -जॉनी यस पापा" पढ़ने वाली पीढ़ी 'गीतांजलि' या 'कामायनी' को वोट शायद ही दे। ऐसे में "अपने" को चुनिए, पर ये मत कहिये कि आप सौ साल के सबसे बढ़िया हैं।
फिर अस्वाभाविक या ग़लत क्या है?
गलत है वह तरीका, जिससे इन उपलब्धियों को आंकने का काम हो रहा है। एक मशहूर साइट ने पिछले सौ सालों की ३८ अभिनेत्रियों के चित्र उनके संक्षिप्त परिचय के साथ पाठकों को "वोटिंग" के लिए परोस दिए हैं। एक जगह कुछ चुनिन्दा फिल्मों पर लोगों की राय 'शताब्दी की सर्वश्रेष्ठ फिल्म' के रूप में मांगी गई है।
इन प्रयासों के जो परिणाम आयेंगे, उनकी कसौटी तो बाद में होगी, अभी उनका नामांकन-चयन ही पूरी तरह निष्पक्ष नहीं कहा जा सकता।
क्षमा करें, "जॉनी -जॉनी यस पापा" पढ़ने वाली पीढ़ी 'गीतांजलि' या 'कामायनी' को वोट शायद ही दे। ऐसे में "अपने" को चुनिए, पर ये मत कहिये कि आप सौ साल के सबसे बढ़िया हैं।
गोविल साब, पोस्ट और पोस्ट हेडिंग में अंतर है या फिर मुझे समझ नहीं आ रहा.
ReplyDeleteAapki baat ekdam sahi hai. Lekin post aur post heading me koi antar nahin hai. Ye isi shaili me likha gaya hai. Ham kabhi-kabhi insaan ke munh ko 'chand ka tukda' bhi kah dete hain.
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