Friday, May 17, 2013

कनेक्टिविटी

एक गाँव के छोटे से स्कूल में सुबह के समय एक बच्चा बैठा अपने बैग में रखी कहानी की किताब पढ़ रहा था। किताब में एक छोटी कहानी थी, कि - "एक आदमी के पास एक मुर्गी थी। वह रोज़ एक अंडा देती थी। आदमी कभी अंडा खाता, कभी बेच देता। एकदिन आदमी के मन में यह लालच-भरा विचार आया, कि  क्यों न मैं मुर्गी को चीर कर सारे अंडे एक साथ ही  निकाल लूं। आदमी ने तेज़ चाकू लेकर मुर्गी का पेट चीर डाला। वहां से अंडे तो नहीं निकले, लेकिन एक "पोटली" ज़रूर निकली। पोटली में ढेर सारा पछतावा भरा था।"
बच्चे ने कहानी सब को सुनाई।
धीरे-धीरे बच्चों का मन कहानी-किताबों से हटने लगा। वे अब खेलना पसंद करते थे, ताकि बड़े होकर खूब नाम और पैसा कमा सकें।
एकबार कुछ बच्चों ने खेल-खेल में खूब नाम कमा लिया। उन्होंने सोचा अब अपने नाम को बेच कर खूब सारा पैसा भी कमा लिया जाये। बच्चों ने बचपन में मुर्गी वाली कहानी तो पढ़ी नहीं थी, अतः उन्हें यह पता नहीं था, कि  रोज़ अंडे खाने से ताकत आती है, और सारे अंडे एक ही दिन निकाल लेने से मुर्गी मर जाती है। उन्हें ये कौन बताता कि  खेलने से मज़े भी आते हैं, और पैसे भी मिलते हैं, जबकि खेल को बेचने से मुर्गी की तरह खेल भी मर जाता है। बच्चे खेल बेचने का खेल खेलने लगे।  
आखिर एकदिन बच्चों को "पछतावे" वाली पोटली मिल ही गई। वे अब ये नहीं सोच रहे थे कि  हमने खेल क्यों बेचा, बल्कि ये सोच रहे थे कि  हमने बचपन में कहानी क्यों नहीं पढ़ी।
 

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