कुछ दिन पहले एक शादी के अवसर पर, जब आशीर्वाद समारोह चल रहा था, और वर-वधू नाते-रिश्तेदारों से घिरे मंच पर बैठे थे, मेरी भतीजी ने आकर मुझसे कहा- "अंकल, आप स्टेज पर से 'ओल्डीज़' को हटादो।"
मैंने पूछा- अरे क्यों?
वह बोली- देखो न, वो सब स्टेज पर खड़े-खड़े आपस में बातें किये जा रहे हैं, कैमरामैन भी एक तरफ चुपचाप खड़ा है, भैया-भाभी [ दूल्हा-दुल्हन] बोर हो रहे हैं, लोग फोटो खिंचाने के लिए लाइन में खड़े हैं, कई तो चले भी गये।
मुझे उसकी समस्या वास्तव में गंभीर लगी। चंद ऐसे बुज़ुर्ग परिजन जो चालीस-चालीस साल बाद मिल रहे थे, भाव-विभोर हो कर मंच पर इकट्ठे हो गए थे, और पुराने दिनों की अंतहीन यादें ताज़ा कर रहे थे।
ऐसे में बच्चे विनम्रता और शिष्टाचार से 'दादाजी-नानाजी' की मदद करने के नाम पर उन्हें हाथ पकड़ कर उतार लायें, यही व्यावहारिक है।
अधिक आयु के लोगों का यह दायित्व भी बनता है कि ऐसे किसी समारोह में शिरकत करते समय किसी युवा को अपने साथ रखें। वह यथास्थिति भांप कर स्वयं आपके लिए वांछित निर्णय ले सकेगा, और आपको नई पीढ़ी में 'अलोकप्रिय' होने से बचायेगा या बचाएगी।
मैंने पूछा- अरे क्यों?
वह बोली- देखो न, वो सब स्टेज पर खड़े-खड़े आपस में बातें किये जा रहे हैं, कैमरामैन भी एक तरफ चुपचाप खड़ा है, भैया-भाभी [ दूल्हा-दुल्हन] बोर हो रहे हैं, लोग फोटो खिंचाने के लिए लाइन में खड़े हैं, कई तो चले भी गये।
मुझे उसकी समस्या वास्तव में गंभीर लगी। चंद ऐसे बुज़ुर्ग परिजन जो चालीस-चालीस साल बाद मिल रहे थे, भाव-विभोर हो कर मंच पर इकट्ठे हो गए थे, और पुराने दिनों की अंतहीन यादें ताज़ा कर रहे थे।
ऐसे में बच्चे विनम्रता और शिष्टाचार से 'दादाजी-नानाजी' की मदद करने के नाम पर उन्हें हाथ पकड़ कर उतार लायें, यही व्यावहारिक है।
अधिक आयु के लोगों का यह दायित्व भी बनता है कि ऐसे किसी समारोह में शिरकत करते समय किसी युवा को अपने साथ रखें। वह यथास्थिति भांप कर स्वयं आपके लिए वांछित निर्णय ले सकेगा, और आपको नई पीढ़ी में 'अलोकप्रिय' होने से बचायेगा या बचाएगी।
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा शनिवार(11-5-2013) के चर्चा मंच पर भी है ।
ReplyDeleteसूचनार्थ!
Dhanyawad.
ReplyDeleteशादी के मंच की असल तस्वीर
ReplyDeleteबहुत बढिया
Dhanyawad
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