नई पीढ़ी को अक्सर यह सोच कर उकताहट होती है, कि बड़े बुज़ुर्ग लोग उनके ऊपर एक अद्रश्य पहरा सा देते हैं। जैसे- उनकी उपस्थिति में बच्चे जोर से हंस-बोल नहीं सकते, उनके लिए सीट छोड़ो, या खड़े हो जाओ, तेज़ आवाज़ में गाने नहीं सुन सकते, उन्हें अभिवादन करना पड़ता है, उनके सामने सोच-समझ कर पहनो-खाओ, यदि कहीं उनके साथ चलना पड़ गया तो धीरे चलो, ज़रा सी गलती हुई तो उनका उपदेश सुनो, आदि-आदि।
असल में बड़े लोग भी मन ही मन वही चाहते हैं, जो बच्चे करते हैं। ऊब-बोरियत और पिछड़ापन खुद उन्हें भी अच्छा नहीं लगता। लेकिन फिर भी वे ऐसा व्यवहार केवल इसलिए करते हैं, क्योंकि उनके भीतर एक असुरक्षा की भावना होती है। उन्हें लगता है कि यदि वे भी बच्चों जैसे व्यवहार ही करने, या स्वीकार करने लग जायेंगे, तो बच्चे उन्हें भी अपना जैसा ही समझ कर उनके साथ उपेक्षा का व्यवहार करने लगेंगे, और उनका सम्मान करना बंद कर देंगे। उम्र के साथ-साथ उनकी शक्ति [सुनने, बोलने, देखने की] तो कम हो ही जाती है, ऐसे में सम्मान भी कम हो गया तो जीना दुश्वार हो जाएगा, यह डर उन्हें हमेशा सताता है।
ऐसे में बेहतर है, कि उन्हें सम्मान देते रहें और अपनी हमउम्र गतिविधियों में भी शामिल करें, उनसे बचें नहीं। सम्मान देने से आपका कुछ घटेगा नहीं, सोचिये ये वे लोग हैं, जो दुनिया से आपसे पहले चले जायेंगे।
असल में बड़े लोग भी मन ही मन वही चाहते हैं, जो बच्चे करते हैं। ऊब-बोरियत और पिछड़ापन खुद उन्हें भी अच्छा नहीं लगता। लेकिन फिर भी वे ऐसा व्यवहार केवल इसलिए करते हैं, क्योंकि उनके भीतर एक असुरक्षा की भावना होती है। उन्हें लगता है कि यदि वे भी बच्चों जैसे व्यवहार ही करने, या स्वीकार करने लग जायेंगे, तो बच्चे उन्हें भी अपना जैसा ही समझ कर उनके साथ उपेक्षा का व्यवहार करने लगेंगे, और उनका सम्मान करना बंद कर देंगे। उम्र के साथ-साथ उनकी शक्ति [सुनने, बोलने, देखने की] तो कम हो ही जाती है, ऐसे में सम्मान भी कम हो गया तो जीना दुश्वार हो जाएगा, यह डर उन्हें हमेशा सताता है।
ऐसे में बेहतर है, कि उन्हें सम्मान देते रहें और अपनी हमउम्र गतिविधियों में भी शामिल करें, उनसे बचें नहीं। सम्मान देने से आपका कुछ घटेगा नहीं, सोचिये ये वे लोग हैं, जो दुनिया से आपसे पहले चले जायेंगे।
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