दो पीढ़ियों के व्यवहार में एक रोचक अंतर और मिलता है।
मौजूदा फैशन को लेकर नई पीढ़ी ज्यादा सजग है। यदि तंग पायजामा फैशन में है, तो फिर नई पीढ़ी को इस से कोई सरोकार नहीं है, कि वह आरामदेह है या तकलीफदेह, उसे वही चाहिए। जबकि पुरानी पीढ़ी को बदन पर जो सुविधा-जनक लग रहा है या सुहा रहा है, वही चाहिए, चाहे वह देखने में कैसा भी पुरातन लग रहा हो।
यही लॉजिक उलट जाता है जब बात 'मेक-अप' की आती है। युवा फैशन-प्रिय होते हैं किन्तु श्रृंगार-प्रिय नहीं होते। प्रायः जो कुछ जैसा है वे उसे वैसा ही दिखाने में यकीन करते हैं। जबकि चीज़ों को श्रृंगार से बदलने की चाहत या लालसा पुराने लोगों में ज्यादा होती है। इसका कारण भी यही है कि उनके व्यक्तित्व में गुजरता वक्त ज्यादा फेर-बदल कर देता है, जबकी युवा उगते हुए जिस्म के मालिक होते हैं, जिसे ज्यादा सजाना-सँवारना नहीं पड़ता।
नई उम्र की नई फसल के विचार चंचल और बदलते हुए होते हैं, शायद इसीलिए जॉर्ज बर्नार्ड शॉ ने कहा है कि फैशन ऐसी बदसूरत चीज़ है जिसे बार-बार बदलना पड़ता है। लेकिन किसी युवादिल से पूछिए- "फैशन कितनी खूबसूरत चीज़ है।"
मौजूदा फैशन को लेकर नई पीढ़ी ज्यादा सजग है। यदि तंग पायजामा फैशन में है, तो फिर नई पीढ़ी को इस से कोई सरोकार नहीं है, कि वह आरामदेह है या तकलीफदेह, उसे वही चाहिए। जबकि पुरानी पीढ़ी को बदन पर जो सुविधा-जनक लग रहा है या सुहा रहा है, वही चाहिए, चाहे वह देखने में कैसा भी पुरातन लग रहा हो।
यही लॉजिक उलट जाता है जब बात 'मेक-अप' की आती है। युवा फैशन-प्रिय होते हैं किन्तु श्रृंगार-प्रिय नहीं होते। प्रायः जो कुछ जैसा है वे उसे वैसा ही दिखाने में यकीन करते हैं। जबकि चीज़ों को श्रृंगार से बदलने की चाहत या लालसा पुराने लोगों में ज्यादा होती है। इसका कारण भी यही है कि उनके व्यक्तित्व में गुजरता वक्त ज्यादा फेर-बदल कर देता है, जबकी युवा उगते हुए जिस्म के मालिक होते हैं, जिसे ज्यादा सजाना-सँवारना नहीं पड़ता।
नई उम्र की नई फसल के विचार चंचल और बदलते हुए होते हैं, शायद इसीलिए जॉर्ज बर्नार्ड शॉ ने कहा है कि फैशन ऐसी बदसूरत चीज़ है जिसे बार-बार बदलना पड़ता है। लेकिन किसी युवादिल से पूछिए- "फैशन कितनी खूबसूरत चीज़ है।"
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