Saturday, May 4, 2013

क्या आप बता सकते हैं कि कितना अंतर है- मार्क्सवादियों और मार्क्स में?

यह कोई अचम्भे की बात नहीं है कि  "मार्क्स" और मार्क्सवादियों में ज़मीन-आसमान का अंतर है। जब पेड़ बीज से अलग हो सकता है, तो मार्क्सवादी मार्क्स से अलग क्यों नहीं हो सकते? आज गांधीवादी गाँधी जैसे नहीं हैं। रामभक्त राम जैसे नहीं हैं। और तो और, कुछ लोग यहाँ तक कहते हैं कि  इस दौर के इंसान इंसानों जैसे नहीं हैं।
आइये देखें, कोई वैसा क्यों नहीं है, जैसा वह हुआ चाहता था?
१.  कभी भी मौलिकता अनुयायिकता जैसी नहीं होती। अर्थात आपके समर्थक आप जैसे नहीं होंगे। वे आपके पीछे चल रहे हैं,जबकि आपने रास्ता बनाया है। यदि वे आप जैसे होते, तो नया रास्ता बनाते, आपके पीछे क्यों चले आते?
२. कार्ल मार्क्स को जो तकलीफ हुई, वह उनके समर्थकों या अनुयायिओं को नहीं हुई, क्यों कि  उसका   समाधान मार्क्स ने दे दिया। जिस पहेली को हल करने में आपने माथा-पच्ची की,आपके फ़ालोअर्स को तो वह सुलझी हुई मिली न ?
तो हम भी इत्मीनान रखें, कि  मार्क्सवादी आज मार्क्स जैसे नहीं हैं, तो कोई बात नहीं।
वैसे उनमें अंतर है क्या? केवल यही- "मार्क्स समझते थे कि  हर व्यक्ति के विचार अलग हो सकते हैं, जबकि मार्क्सवादियों का विचार है कि  सबको उनकी तरह ही सोचना चाहिए।"  

4 comments:

  1. कुछ शब्दों में आपने बड़ी बात कही है

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  2. हर मजहब की यही कहानी - करे कोई, भरे कोई ...

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  3. Dhanyawad.Jab tak bharne wale maujood hain, tab tak to chal jayega, chintaa uske baad kee hai.

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  4. बिल्कुल सही कहा है आपने प्रबोध भाई , इस बारीक अंतर को ही तो समझना है .आधी समस्या इसे समझने से ही दूर हो जायेगी .

    मधुदीप

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