मैं शाम के समय एक बगीचे में टहल रहा था ,तभी मुझे एक छोटा सा,प्यारा सा बच्चा दिखा.मैंने बच्चे से कुछ बात करने की गरज से उसकी ओर हाथ हिला दिया .मैंने सोचा था किवह हंस कर जवाब देगा पर इसके विपरीत उसने तो दूसरी ओर मुंह फेर लिया.मुझे लगा, कोई उसके साथ होगा जिसे आगे-पीछे हो जाने के कारण बच्चा ढूंढ रहा है,इसी से परेशान सा भी दिख रहा है.पर बड़ी दूर तक बच्चे के आगे पीछे कोई न दिखा.मैं हैरान था कि इतने से बच्चे को पार्क में अकेला भला कौन छोड़ गया.मैं आगे बढ़ कर बच्चे से मुखातिब हुआ-तुम कहाँ जा रहे हो?आओ ,हमारे साथ खेलो।
अब मेरे चौंकने की बारी थी .बच्चा उसी तरह गंभीर मुद्रा में चला जा रहा था और चलते-चलते ही भारी आवाज़ में बोला -आत्माएं किसी के साथ खेलती नहीं हैं.मैं भयभीत होकर ठिठक गया.फिर भी साहस कर बोला-तुम किस की आत्मा हो,और कहाँ से आरहे हो?
बच्चा बोला-मैं अपनी ही आत्मा हूँ ,बगीचे के दूसरी तरफ आज मेरी माँ की मूर्ति लगाईं जा रही थी , उसी को देखने आया था।
तुम्हारी माँ कौन हैं और उनकी मूर्ति क्यों लगाईं जा रही थी?मैंने पूछा।
बहुत साल पहले मेरी माँ एक राजा के यहाँ काम करती थी.वह मेरे साथ-साथ राजा के पुत्र की देखभाल भी करती थी.मेरे हिस्से का अपना दूध भी कभी-कभी उसे पिला देती थी.एक दिन राजा के ऊपर किसी ने आक्रमण कर दिया.वह राजा के बेटे को भी मारने के लिए हाथ में नंगी तलवार लेकर आने लगा.तब मेरी माँ ने मुझे झटपट राजकुमार के कपड़े पहना कर उसकी जगह सुला दिया और राजकुमार को गोद में लेकर छिप गयी।
अरे,फिर? मैंने पूछा।
फिर मैं मारा गया.राजकुमार बच गया.मेरी माँ को कर्तव्यनिष्ठा का पुरस्कार मिला और इतिहास ने उसे महान घोषित कर दिया.इसी से आज कई सौ वर्ष बीतने के बाद भी उसकी स्वामिभक्ति की मिसाल को ज़िंदा रखने के लिए उसकी प्रतिमा यहाँ बगीचे में लगाईं गयी है।
अरे,तब तो तुम महान हो.फिर आत्मा के रूप में भटक क्यों रहे हो?
वह बोला-मैं महान नहीं हूँ.मेरी माँ महान है.उसने राज्य के राजा को बचाने के लिए मेरी कुर्बानी देदी.अपने बेटे की।
तब तो तुम्हे अपनी माँ पर गर्व होना चाहिए .उसने अपने कलेजे के टुकड़े से ज्यादा अपने राज्य को माना।
यह सब बड़ी-बड़ी बातें हैं.मैं यह नहीं समझता.मैं तो यह जानता हूँ कि वह मेरी माँ थी,मेरे ऊपर आने वाले किसी भी संकट को अपने ऊपर लेने की जगह उसने तो मुझे ही संकट में डाल दिया.क्या माँ की ममता यही होती है?एक कर्मचारी के रूप में उसकी कर्तव्यनिष्ठा ही सब कुछ थी?क्या माँ की ममता का कोई महत्व नहीं था?
मैं निरुत्तर हो गया.वह बोला- मेरे ह्रदय में बैठ कर सारी बात को सोचो.फिर बताओ मैं उस पर गर्व क्यों करूं?
मैंने डरते-डरते कहा-पर अब कई युग बीत चुके हैं.करोड़ों बच्चे तुम्हारी माँ की महानता के बारे में जान चुके हैं,तुम इतनी देर से यह सवाल क्यों उठा रहे हो?
क्योंकि इस युग में स्वार्थी,निकम्मे और भ्रष्ट राजा आये हैं.इनके लिए गलती से भी कहीं इनकी प्रजा जान न देदे ,इसलिए।
[मेरी नई किताब -" इतिहास बदलने की अनुमति है", से उद्धृत अंश ]
प्रकाशित पुस्तकें
उपन्यास: देहाश्रम का मनजोगी, बेस्वाद मांस का टुकड़ा, वंश, रेत होते रिश्ते, आखेट महल, जल तू जलाल तू
कहानी संग्रह: अन्त्यास्त, मेरी सौ लघुकथाएं, सत्ताघर की कंदराएं, थोड़ी देर और ठहर
नाटक: मेरी ज़िन्दगी लौटा दे, अजबनार्सिस डॉट कॉम
कविता संग्रह: रक्कासा सी नाचे दिल्ली, शेयर खाता खोल सजनिया , उगती प्यास दिवंगत पानी
बाल साहित्य: उगते नहीं उजाले
संस्मरण: रस्ते में हो गयी शाम,
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शोध
आपको क्या लगता है? शोध शुरू करके उसे लगातार झटपट पूरी कर देने पर नतीजे ज़्यादा प्रामाणिक आते हैं या फिर उसे रुक- रुक कर बरसों तक चलाने पर ही...
क्योंकि इस युग में स्वार्थी,निकम्मे और भ्रष्ट राजा आये हैं.इनके लिए गलती से भी कहीं इनकी प्रजा जान न देदे ,इसलिए।
ReplyDeleteबहुत ही सही बात कही उस बच्चे ने ,आज राजा के लिए नहीं बल्कि आम सच्चे,अच्छे,इमानदार और देशभक्त लोगों के लिए जान देने की जरूरत है तब जाकर व्यवस्था सही होगी | लेकिन अफ़सोस की लोगों के पास इसके लिए ना तो समय है ,ना जज्बा और ना ही पैसा ...
bahoot hi gahra sawal......
ReplyDeleteapke blog ki sari post anmol hai........
beshak , kafi badiya tareeke se point uthaya hai...
ReplyDeleteमहान लेखकों की एक निशानी होती है की वो अपनी रचनाओं से समाज के दिल को झकझोर देते हैं और उसको आइना दिखाते हैं
ReplyDeleteआपकी दूरदर्शी सोच को सलाम है ………अगर मिले आपकी किताब तो जरूर पढना चाहूँगी।
ReplyDeleteBahut Dhanyawad Vandna Ji,Meri kuchh rachnaayen isi blog par bhi hain.
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