Wednesday, July 21, 2010

मजदूरी तय करने से पहले मजदूर बनाइये तो

आजकल आरक्षण को लेकर बड़ी विचित्र स्थिति है.आरक्षण मांगने के लिए संगठन और पार्टियाँ बन रही हैं ,तो आरक्षण हटाने के लिए भी कुछ संगठन और पार्टियाँ सामने आरही हैं.क्या हम इस विचार-विभाजन को एक स्वस्थ बहस का रूप दे सकते हैं?जो लोग आरक्षण मांग रहे हैं वे इसके लिए मुख्यतर्क इस प्रकार देते हैं-
कुछ जातियों को अतीत में इतना दबा कर रखा गया कि वे अबतक अपने पिछड़ेपन से उबर नहीं पाई हैं.उनके उत्थान के लिए उनकी सफलता कुछ नौकरियों में सुनिश्चित कर दी जाए ताकि वे समानता से आगे बढ़ सकें ।
जो लोग आरक्षण हटाने की बात कहते हैं उनका तर्क है कि आरक्षण प्राप्त करके नौकरियों में जाने वालों से देश में कार्य का स्तर गिरता जा रहा है और उनका भी उत्थान नहीं हो रहा बल्कि बिना योग्यता के जीवन भर कमाते जाने की प्रवृत्ति पनप रही है।
इन दोनों बातों पर ईमानदारी से सोचिये और बताइये कि इन दोनों में से कौन सी बात आपको ज्यादा महत्वपूर्ण लगती है-पहली या दूसरी?
एक तीसरी बात भी है.कुछ लोग कहते हैं कि जब हमारे संविधान ने आरक्षण की व्यवस्था दी है तो इसका लाभ हम क्यों न लें?लेकिन यहाँ एक बात यह भी याद रखनी होगी कि संविधान ने यह व्यवस्था हमेशा के लिए नहीं दी थी .अब यदि यह व्यवस्था लगातार चलती जा रही है तो इसके पीछे उन लोगों का प्रयास भी काम कर रहा है जो आरक्षण से ऊँचे पदों पर पहुंचे हैं।
परन्तु इन तीनों बातों से ऊपर एक चौथी बात भी है .देश की युवा पीढी यह नहीं कहती कि कौन सी बात सही है कौन सी गलत ,वह तो केवल यह कहती है कि रोजगार का साधन उन्हें मिलना ही चाहिए.यह मांग किसी भी देश में नाजायज़ नहीं है.हर हाथ को काम देने की जिम्मेदारी देश के नियंताओं को लेनी ही चाहिए.हमारे नीतिनिर्माताओं को यह भी सोचना चाहिए कि यदि युवाओं को काम दिया जाता है तो वे अपनी योग्यता और क्षमता के अनुसार ही फल की कामना करते हैं.पर यदि काम नहीं दिया जाता तो हर एक व्यक्ति असीमित इच्छाएं लेकर रोज़गार के बाज़ार में उतरता है जहाँ फिर टैक्सचोरी भी होती है,गैर-कानूनी कारोबार भी,छलकपट से पैसे कमाने की प्रवृत्ति भी और भ्रष्टाचार भी.अराजकता के जंगल में एक चौड़ा रास्ता इस लापरवाही से ही जाता है.

3 comments:

  1. आपने तो बहुत अच्छा लिखा....

    'पाखी की दुनिया' में आपका स्वागत है.

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