Friday, April 25, 2014

जेंडर डिसक्रिमिनेशन अर्थात लिंग आधारित भेदभाव

 एक मकान की छत पर शाम के समय कुछ लोग खड़े होकर मौसम का आनंद ले रहे थे, तभी दूर से दिखाई देते एक खेत के किनारे कच्चे रास्ते पर धूल उड़ाते हुए कुछ मवेशियों का झुण्ड गुज़रा.छत पर उपस्थित परिवार के लोगों के बीच से एक वृद्ध महिला ने कहा- "गायें जा रही हैं."
तभी एक छोटी सी बच्ची ने ध्यान से उधर देख कर खेल-खेल में गिनती शुरू की- "गाय,सांड,गाय, बछड़ा,बैल, गाय, बछड़ा … "
तभी मेरा ध्यान वास्तव में इस बात पर गया कि  जाने वाले समूह में सभी गायें नहीं हैं.
प्रायः ऐसा होता है, सामने से पक्षियों का झुण्ड उड़ कर निकलता है और हम कहते हैं, देखो तोते !निश्चय ही उनमें कुछ तोतियां [मादा तोते] भी होती होंगी.
जब रसोई की खुली खिड़की के सामने रखा दूध गायब मिलता है तो हम झट कह देते हैं कि  बिल्ली दूध पी गई.क्या हम जानते हैं कि  दूध किसी बिल्ली ने ही पिया है, बिलाव [नर] ने नहीं ?
इसी रसोई में जब शाम की बची बासी रोटी फेंकने की बारी आती है तो कहा जाता है कि  रोटी कुत्ते को डाल दो, कोई नहीं कहता कि कुतिया को रोटी डाल दो.
अगर आपको लगता है कि हम उसी वर्ग का नाम ले देते हैं जिसका नाम छोटा या आसान हो, तो ज़रा सोचिये- आसमान में उड़ते पंछियों को आप "चिड़िया उड़ रही हैं कहते हैं या चिड़े उड़ रहे हैं? आपने किसी को बकरे चराने जाते सुना है? सब बकरियां चराने ही जाते हैं. तालाब में नहाती भैसों में क्या भैंसे नहीं होते? पर हम कह देते हैं की भैंसें नहा रही हैं.यहाँ तक कि  हम यह कहने में भी नहीं चूकते कि कबूतर ने अंडे दे दिए.
ऐसे लोग, जो हिंदी कम जानते हैं या सीख रहे होते हैं, वे इस दुविधा में और भी उलझ जाते हैं.वे सोचते हैं कि इस उलझन को वे ही नहीं सुलझा पा रहे, जबकि हम हिंदी-भाषी लोग खुद भी इससे अनभिज्ञ हैं.
एक बार मेरे एक मित्र ने जब मुझसे पूछा- "आपने कैसे कह दिया कि मेज पर पैन रखा है और पेन्सिल रखी है, या मेज नीची है और स्टूल ऊंचा है ?" तो मेरे पास बगलें झाँकने के अलावा और कोई चारा नहीं था.क्या आपके पास है?    
      

3 comments:

  1. सुन्दर रचना

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  2. , बोलचाल की भाषा में ऐसा चलता ही है सुन्दर रचना

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हम मेज़ लगाना सीख गए!

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