Sunday, April 13, 2014

"मीडिया वाला"

दो बच्चे एक पेड़ के नीचे पड़े मिट्टी के ढेर में खेल रहे थे. कभी वे कोई घर जैसी इमारत बना लेते, तो कभी उसे तोड़ कर मिट्टी की गाड़ी बना लेते.जल्दी ही दोनों ऊब गए.पर शाम का धुँधलका अभी पूरी तरह हुआ नहीं था, इसलिए इतनी जल्दी घर लौट जाने को भी दोनों तैयार नहीं थे.
तभी उधर से एक बूढा फ़कीर आ निकला.वह बेहद अशक्त और कृशकाय था, उससे ठीक से चला भी न जाता था. बच्चे बहुत ध्यान से उसे देखने लगे.बच्चों को प्यार से देखता वह उस ओर ही आने लगा.
बच्चे पहले तो कौतुहल से देखते रहे किन्तु कुछ नज़दीक आने पर उन्होंने देखा कि फ़कीर की शक्ल खासी डरावनी है. बच्चे कुछ भयभीत हुए पर वे दो थे, एक दूसरे की हिम्मत का सहारा था, और इतने जर्जर बूढ़े से खौफ़ खाने की कोई वजह नहीं थी.
बूढ़ा लड़खड़ाता हुआ उनके पास ही आ बैठा.उसका दम भी कुछ फूलता सा लगता था, सांस तेज़ी से चल रही थी.
उसे अपनी तुलना में बिलकुल निरीह पाकर बच्चों का हौसला बढ़ा.एक बोला- बाबा, आप बहुत थके से लगते हो, हम आपके लिए कुछ खाने-पीने का सामान लाएं ?
बाबा ने उत्तर दिया- बेटा, मुझे ज़िंदगी में जो खाना-पीना था वह मैं खा चुका हूँ,अब तो तुम मुझ पर एक उपकार करो, जिस मिट्टी के ढेर में तुम खेल रहे हो,उसी से मेरी एक मूरत बना दो.
-क्यों बाबा, उससे क्या होगा? बच्चों ने एकसाथ अपनी उत्सुकता जताई.
-बेटा,जब मैं न रहूँगा तो कभी न कभी कोई टीवी वाला इधर से गुज़रते हुए मेरे बुत की तसवीर खींच लेगा, और जब उसे परदे पर दिखा देगा तो मेरे सभी जानने वालों को कम से कम पता तो लग जायेगा कि मैं अब न रहा.
-ठीक है बाबा, कह कर एक बच्चा आज्ञाकारी शिष्य की भांति मिट्टी से बाबा का बुत  बनाने में जुट गया.
दूसरा बच्चा भी मिट्टी लेकर एक और बुत बनाने लगा.
बाबा ने आश्चर्य-मिश्रित ख़ुशी से कहा- ओह, तुम भी बना रहे हो, तो मेरे दो-दो बुत ?
-नहीं बाबा, मैं तो एक ख़ूबसूरत लड़की की मूर्ति बना रहा हूँ.
-क्यों? बाबा हैरान था.
-इसे आपकी मूर्ति के पास रख देंगे।
-लेकिन क्यों? बाबा बोला.
-अरे, तभी तो कोई कैमरे वाला देखेगा आपकी तरफ! दोनों बच्चों ने लापरवाही से कहा.                           

2 comments:

  1. काफी पैनी नज़र है , बच्चों की । प्रशंसनीय प्रस्तुति ।

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  2. Aapka aabhaar pahle, baad me bachchon ka...

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