एक राजा हो, एक मंत्री हो, एक सेनापति हो, एक सिपाही हो.
फिर कुछ वर्ष बीतें, और राजा का पुत्र नया राजा हो, मंत्री का पुत्र नया मंत्री हो, सेनापति का पुत्र राज्य का नया सेनापति बने और सिपाही का बेटा फ़ौज में सिपाही हो.
आम तौर पर इस व्यवस्था को "फ्यूडलिज़्म" या सामंतशाही समझा जाता है.यह वर्षों तक प्रचलन में रही है, और इसमें कुछ अपवादों को छोड़ कर कोई बहुत बुरी बात भी नहीं देखी गई है.क्योंकि यह माना जाता है कि हर पुत्र प्रायः अपने पिता का काम तो बेहतर समझता ही है .
फिर सामंतशाही से त्रस्त होकर इसे हटाने की मुहिम क्यों चलती है ?
इसलिए कि समय के साथ बीच-बीच में एक नए किस्म की सामंतशाही भी पनप जाती है.
इस नई सामंतशाही में राजपुत्र तो नया राजा बनता ही है किन्तु राजा का रथ हांकने वाला, राजा को नहला-धुला कर तैयार करने वाला, राजा की रसोई बनाने वाला, राजा के वस्त्र-प्रक्षालन करने वाला और राजा का निजी सेवक राज दरबार के हाकिमों के बड़े पदों पर खुद को सुशोभित देखना चाहते हैं.उनकी एकमात्र योग्यता "राजा तक निजी पहुँच" होती है. राजा को भी इन्हें मूक-स्वीकृति देनी पड़ती है क्योंकि ये उसके विश्वासपात्र "सेवक" होते हैं.
हमारे देश में ऐसे कई प्रधान मंत्री हुए हैं, जो कब हुए,क्यों हुए, किसकी मेहरबानी से हुए, ये कोई नहीं जानता. वे कब तक रहे, कब चले गए, उन्होंने क्या किया, इसके बारे में भी किसी ने कोई खास ध्यान नहीं दिया. इनमें सप्ताह, महीना, सालभर रहने वाले भी थे और पाँच सौ तियालीस में से दस, बीस, पचास सीटें पाने वाले भी.कुछ तात्कालिक शोशे छोड़ने वाले भी.
लेकिन आज़ादी के बाद यह शायद पहला ऐसा अवसर है जब प्रधान मंत्री पद पर कार्य करने की दावेदारी जताने के इच्छुक किसी व्यक्ति की आठों दिशाओं से, हर कसौटी से, हर योग्यता-क्षमता की परख की जा रही है, उसे हर कोण से जांचा- परखा जा रहा है, और बाल की खाल निकाल कर उस से अदृश्य बॉन्ड भरवाये जा रहे हैं.वह क्या करेगा, कैसे करेगा, उसने अब तक क्या किया ? पूरा देश "सलेक्शन कमिटी" में है,
मानो इस से पहले के सभी प्रधान मंत्री पूर्ण सक्षम,सर्व-स्वीकृत, सर्वगुण- संपन्न थे.
बहरहाल, यह एक अच्छा संकेत है, जो बताता है कि देश वास्तव में "प्रधान मंत्री" चुनने जा रहा है.जो भी चुना जायेगा वह किसी "इज़्म" की सौगात नहीं होगा, बल्कि देश का एक दूरदर्शी- लोकप्रिय नेता सिद्ध होगा.
फिर कुछ वर्ष बीतें, और राजा का पुत्र नया राजा हो, मंत्री का पुत्र नया मंत्री हो, सेनापति का पुत्र राज्य का नया सेनापति बने और सिपाही का बेटा फ़ौज में सिपाही हो.
आम तौर पर इस व्यवस्था को "फ्यूडलिज़्म" या सामंतशाही समझा जाता है.यह वर्षों तक प्रचलन में रही है, और इसमें कुछ अपवादों को छोड़ कर कोई बहुत बुरी बात भी नहीं देखी गई है.क्योंकि यह माना जाता है कि हर पुत्र प्रायः अपने पिता का काम तो बेहतर समझता ही है .
फिर सामंतशाही से त्रस्त होकर इसे हटाने की मुहिम क्यों चलती है ?
इसलिए कि समय के साथ बीच-बीच में एक नए किस्म की सामंतशाही भी पनप जाती है.
इस नई सामंतशाही में राजपुत्र तो नया राजा बनता ही है किन्तु राजा का रथ हांकने वाला, राजा को नहला-धुला कर तैयार करने वाला, राजा की रसोई बनाने वाला, राजा के वस्त्र-प्रक्षालन करने वाला और राजा का निजी सेवक राज दरबार के हाकिमों के बड़े पदों पर खुद को सुशोभित देखना चाहते हैं.उनकी एकमात्र योग्यता "राजा तक निजी पहुँच" होती है. राजा को भी इन्हें मूक-स्वीकृति देनी पड़ती है क्योंकि ये उसके विश्वासपात्र "सेवक" होते हैं.
हमारे देश में ऐसे कई प्रधान मंत्री हुए हैं, जो कब हुए,क्यों हुए, किसकी मेहरबानी से हुए, ये कोई नहीं जानता. वे कब तक रहे, कब चले गए, उन्होंने क्या किया, इसके बारे में भी किसी ने कोई खास ध्यान नहीं दिया. इनमें सप्ताह, महीना, सालभर रहने वाले भी थे और पाँच सौ तियालीस में से दस, बीस, पचास सीटें पाने वाले भी.कुछ तात्कालिक शोशे छोड़ने वाले भी.
लेकिन आज़ादी के बाद यह शायद पहला ऐसा अवसर है जब प्रधान मंत्री पद पर कार्य करने की दावेदारी जताने के इच्छुक किसी व्यक्ति की आठों दिशाओं से, हर कसौटी से, हर योग्यता-क्षमता की परख की जा रही है, उसे हर कोण से जांचा- परखा जा रहा है, और बाल की खाल निकाल कर उस से अदृश्य बॉन्ड भरवाये जा रहे हैं.वह क्या करेगा, कैसे करेगा, उसने अब तक क्या किया ? पूरा देश "सलेक्शन कमिटी" में है,
मानो इस से पहले के सभी प्रधान मंत्री पूर्ण सक्षम,सर्व-स्वीकृत, सर्वगुण- संपन्न थे.
बहरहाल, यह एक अच्छा संकेत है, जो बताता है कि देश वास्तव में "प्रधान मंत्री" चुनने जा रहा है.जो भी चुना जायेगा वह किसी "इज़्म" की सौगात नहीं होगा, बल्कि देश का एक दूरदर्शी- लोकप्रिय नेता सिद्ध होगा.
सामंतशाही के विरुद्ध यह अच्छा संकेत है . खूब ठोक-बजाकर चुनाव करें, यही स्वस्थ लोकतंत्र का संकेत है .
ReplyDeleteBajakar prachar,thok kar Vote, yahi loktantra hai.Aabhaar !
ReplyDelete,सुन्दर, मजे की बात यह है कि परखने वाले खुद उन गलियारों से कभी गुजरे भी नहीं.जिस बन्दे ने कभी किसी उपमंत्री पद पर कार्य न किया हो वह भी हिसाब मांग रहा है, तरक्की का प्रारूप पूछ रहे हैं जिनका बोलते हुए सांस हांफने लग रहा हो वे क्या देश चलाएंगे यह भी सवाल बनता ही है.कुछ मायने में इस बार का चुनाव अनोखा ही है
ReplyDeleteAisa lag raha hai, jaise desh aur satta "INKI" hai jise dene me inka dam atak raha hai.Aabhaar.
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