Thursday, April 24, 2014

टीचर कोई भी हो सकता है, अतीत-वर्तमान भी, इंदिराजी-मोदीजी भी

बचपन में मुझे "डिबेटर" बनने का बड़ा शौक था, एक ही बात को हम दो अलग-अलग स्वरों में कैसे कह सकते हैं, यह सीखना मुझे अच्छा लगता था.
बात उन दिनों की है जब इंदिराजी ने प्रधान मंत्री पद नया-नया संभाला था. कांग्रेस के पुराने- बुजुर्ग और अनुभवी नेता सोचते थे कि  नई उम्र की यह महिला पद को सुशोभित करती रहेंगी, और फैसले हम लेंगे.किन्तु जल्दी ही लोगों ने देखा कि  मोरारजी, पाटिल, निजलिंगप्पा,कामराज आदि सिंडिकेट सदस्यों की आवाज़ धीरे-धीरे नेपथ्य में चली गई,यहाँ तक कि राष्ट्रपति चुनाव में उनकी पसंद के उम्मीदवार तक को इंदिराजी ने नहीं माना और अपना उम्मीदवार घोषित करके जिताया.
लगभग आधी सदी के बाद भारतीय जनता पार्टी में भी मोदीजी एकाएक उभरे.ऐसा लगा कि  आडवाणी जी, जोशीजी, जसवंत सिंह, गडकरीजी, सुषमाजी की बात कहीं धीमी हो रही है.
इन दोनों ही अवसरों पर यदि लोगों की कही हुई बातें ध्यान से सुनें, तो हमें काफी कुछ सीखने को मिलता है.
जो लोग उस समय कह रहे थे- "वाह, क्या व्यक्तित्व है, सबको एक तरफ बैठा दिया, पुरानी सोच को हटा कर पार्टी में 'नयापन' फूंक दिया" वही अब कह रहे हैं-"क्या तानाशाही है, बड़ों के सम्मान को ठेस पहुंचाई है".
जो बच्चे भविष्य में "डिबेटर" या "प्रवक्ता" बनना चाहते हैं, वे सीखें कि एक ही बात को अलग-अलग अवसर पर, अलग-अलग सुरों में कैसे कहते हैं.     
   
      

4 comments:

  1. अलग अलग वक्त की बात है पासा कैसे भी पड़ सकता है

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  2. Waqt se din aur raat, waqt se kal aur aaj, waqt ki har shay gulaam, waqt ka har shay pe raj.Aabhaar!

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