एक समंदर के रेतीले किनारे पर सुबह की गुनगुनी धूप में छोटा सा एक घोंघा बार-बार अपनी गर्दन खोल में से निकाल कर इधर-उधर देख रहा था. ऐसा लगता था कि वह अपने दिल की कोई बात किसी से कहना चाहता है.एक मीठी सी बेचैनी उसे उतावला किये हुए थी.
लो, भला दुनिया में कुछ शिद्दत से चाहो, और वो न मिले, ऐसा हो सकता है ? सामने ही रेंग कर उस तरफ आती एक नन्ही सी सीप उसे दिख गई.
वह थोड़ा और नज़दीक आये, तो उसे अपनी बात कहूँ, ये सोचते हुए घोंघे ने मुश्किल से सब्र रखा.
जब वह बिलकुल करीब आ गयी, और यह इत्मीनान हो गया कि अब वह उसे साफ़-साफ़ सुन पा रही है, घोंघे ने हुलस कर कहा-"ओ सुन,आज मैंने एक छोटी मछली से रेस लगाई"
-"अच्छा, कौन जीता?" सीप ने भी अजनबी में दिलचस्पी लेते हुए कहा.
-"मैं, और कौन?" घोंघे का जोश लेशमात्र भी कम नहीं हुआ था.
-"मछली बीमार होगी?" सीप ने घोंघे के उत्साह को थोड़ा कसना चाहा.
-"अरे नहीं, वह तो पूरी ताकत से तैर रही थी." घोंघा भला अपनी उपलब्धि कम क्यों होने देता?
-"तो तू फेसबुक पर डाल दे, सबको पता चल जायेगा" सीप ने सलाह दी.
तभी उनकी बात एकाएक उमड़े कोलाहल में दब कर रह गई. अचानक वहां पंछियों का एक बड़ा झुण्ड चहचहाते हुआ चला आया. कूदते-फुदकते सब कुछ न कुछ बोल रहे थे. बीच-बीच में आवाज़ें आती थीं-
"मैं ने तलहटी से शिखर तक की दूरी तीन-घंटे में पूरी की, बाज़ को तो मैंने खूब छकाया, अरे, चील तो मुझे देख कर मुंह में पानी भरे बैठी थी, पर मैं 'ये जा- वो जा', उड़न छू हो गया, हरिण भी क्या याद रखेगा, वह डाल-डाल तो मैं पात - पात, मैं तो ऐसा दौड़ा कि चीता भी घुटने टेक कर पसर गया."
एक हलकी सी लहर आई, और घोंघे ने सोचा-" धूप बढ़ रही है,क्यों न घर लौटूं!" और वह पानी में समा गया.
लो, भला दुनिया में कुछ शिद्दत से चाहो, और वो न मिले, ऐसा हो सकता है ? सामने ही रेंग कर उस तरफ आती एक नन्ही सी सीप उसे दिख गई.
वह थोड़ा और नज़दीक आये, तो उसे अपनी बात कहूँ, ये सोचते हुए घोंघे ने मुश्किल से सब्र रखा.
जब वह बिलकुल करीब आ गयी, और यह इत्मीनान हो गया कि अब वह उसे साफ़-साफ़ सुन पा रही है, घोंघे ने हुलस कर कहा-"ओ सुन,आज मैंने एक छोटी मछली से रेस लगाई"
-"अच्छा, कौन जीता?" सीप ने भी अजनबी में दिलचस्पी लेते हुए कहा.
-"मैं, और कौन?" घोंघे का जोश लेशमात्र भी कम नहीं हुआ था.
-"मछली बीमार होगी?" सीप ने घोंघे के उत्साह को थोड़ा कसना चाहा.
-"अरे नहीं, वह तो पूरी ताकत से तैर रही थी." घोंघा भला अपनी उपलब्धि कम क्यों होने देता?
-"तो तू फेसबुक पर डाल दे, सबको पता चल जायेगा" सीप ने सलाह दी.
तभी उनकी बात एकाएक उमड़े कोलाहल में दब कर रह गई. अचानक वहां पंछियों का एक बड़ा झुण्ड चहचहाते हुआ चला आया. कूदते-फुदकते सब कुछ न कुछ बोल रहे थे. बीच-बीच में आवाज़ें आती थीं-
"मैं ने तलहटी से शिखर तक की दूरी तीन-घंटे में पूरी की, बाज़ को तो मैंने खूब छकाया, अरे, चील तो मुझे देख कर मुंह में पानी भरे बैठी थी, पर मैं 'ये जा- वो जा', उड़न छू हो गया, हरिण भी क्या याद रखेगा, वह डाल-डाल तो मैं पात - पात, मैं तो ऐसा दौड़ा कि चीता भी घुटने टेक कर पसर गया."
एक हलकी सी लहर आई, और घोंघे ने सोचा-" धूप बढ़ रही है,क्यों न घर लौटूं!" और वह पानी में समा गया.
उत्तम, एक अच्छी प्रतीक कथा .
ReplyDeleteजानकारीप्रद कहानी।
ReplyDeleteAap donon ka Shukriya!
ReplyDeleteहर कोई अपनी उपलब्धि को महान समझता है,अच्छी प्रतीक कथा
ReplyDeleteYakeenan, har ek ki uplabdhi mahaan hai, bas, use doosron ke Bhuchaal se bachaana hi hamari kasauti hai. Dhanyawad !
ReplyDelete