Wednesday, April 2, 2014

क्या आप महिला सशक्तिकरण की दिशा में इस अवरोध को नहीं देखते?

हमारे देश की  शिक्षा व्यवस्था में एक व्यक्ति अठारह साल का होने तक कितना शिक्षित हो सकता है?
औसतन शायद वह सीनियर सेकण्ड्री पास कर सकता है।  अर्थात वह अपनी स्कूली पढ़ाई पूरी कर सकता है।
इसी तरह एक व्यक्ति इक्कीस साल की  उम्र होने तक कितनी पढ़ाई कर सकता है?
साधारणतः नियमित रूप से पढ़ने वाला औसत विद्यार्थी इस आयु तक बी. ए. पास कर सकता है।
आइये अब देखें कि एक नया घर बनाते समय हमारा क़ानून क्या चाहता है?
हमारा कानून चाहता है कि जब एक स्त्री और एक पुरुष विवाह करके जीवनसाथी के रूप में एक नयी ज़िंदगी शुरू करें, तो इस नए घर में बी.ए.पास लड़का हो और सीनियर सेकण्ड्री पास लड़की।
आप जानते हैं कि यदि दो जुड़वां बच्चे एक साथ भी पैदा हों, तो उनमें आयु का पाँच मिनट का भी अंतर होने पर एक को बड़ा और दूसरे को छोटा कहा जाता है।  जीवन भर हर काम और रिश्तों में उम्र के इसी अंतर के आधार पर सब कुछ निर्धारित होता है।
आप खुद सोचिये कि यदि कोई व्यक्ति दूसरे से तीन वर्ष बड़ा हो तो उसकी वरिष्ठता जीवनभर होगी या नहीं?
ऐसी व्यवस्था हो जाने के बाद जीवन भर दोनों को "समान" कहना क्या महिलाओं के साथ अन्याय नहीं है?
यदि क़ानून यह समझता है कि कम पढ़ीलिखी , छोटी उम्र की लड़की और ज्यादा पढ़ेलिखे, बड़ी उम्र के लड़के से ही नया घर ज्यादा अच्छी तरह चलेगा, तो क्या कानून यह व्यवस्था नहीं कर सकता कि शादी के बाद लड़की नहीं, बल्कि लड़का अपना घर छोड़ेगा !   

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