देश में चुनाव के चलते आज एक नज़ारा आम है. हर टीवी चैनल पर मीडिया कर्मी पत्रकार-गण अलग-अलग पार्टियों के नुमाइंदों को बुला कर बैठा लेते हैं और फिर किसी न किसी मुद्दे को लेकर, कभी-कभी बेमुद्दा भी, उन पर सवालों की बौछार कर देते हैं. उसके बाद ये नेता गण जवाब देने में चीखते-चिल्लाते, पसीना बहाते दिखाई देते हैं.यहाँ तनाव पत्रकारों के चेहरे पर नहीं, बल्कि नेताओं के चेहरे पर होता है क्योंकि कैमरा पत्रकारों का होता है.कई बार तो कैमरा बात पूरी होने से पहले ही हटा लिया जाता है और फिर उनके बयान को चाहे जैसे तोड़ा -मरोड़ा जा सकता है.
ये चर्चाकार कई बार तो सभी सीमायें लांघ जाते हैं और किसी प्राइमरी स्कूल टीचर की तरह नेताओं को बच्चों की तर्ज़ पर डाँटते भी देखे जाते हैं.
यह सब अच्छा है, यदि ये तंज भरी तान देश हित में हो, अच्छे चुनाव के लिए हो, राजनैतिक अनुशासन के लिए हो.
पर …
ये कड़क मास्टरजी कहीं चुनाव के बाद इन्हीं नेताओं के सामने हाथ जोड़ कर कल "श्री" "भूषणों " और "रत्नों " की लाइनों में लगे नज़र न आएं. क्षमा !
ये चर्चाकार कई बार तो सभी सीमायें लांघ जाते हैं और किसी प्राइमरी स्कूल टीचर की तरह नेताओं को बच्चों की तर्ज़ पर डाँटते भी देखे जाते हैं.
यह सब अच्छा है, यदि ये तंज भरी तान देश हित में हो, अच्छे चुनाव के लिए हो, राजनैतिक अनुशासन के लिए हो.
पर …
ये कड़क मास्टरजी कहीं चुनाव के बाद इन्हीं नेताओं के सामने हाथ जोड़ कर कल "श्री" "भूषणों " और "रत्नों " की लाइनों में लगे नज़र न आएं. क्षमा !
अब तो मीडिया बिका हुआ ही है, इस लिए किस से क्या उम्मीद , इस देश में सब सम्भव है.
ReplyDeleteAapki baat vazandaar hai.
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