Sunday, April 8, 2012

सूखी धूप में भीगा रजतपट [ भाग 32 ]

     ये काम आसान न था. रसबाला को मुस्लिम परिवार के लिए गोद लेना आसान न था. कई पेचीदगियां थीं. लेकिन बच्चों के भविष्य को देखते हुए, जब अनाथालय के अधीक्षक ने पाया कि कोई संपन्न महिला बार-बार रसबाला को ले जाने के लिए ही आग्रह कर रही है, तो उन्होंने रूचि लेकर मुस्लिम दंपत्ति की मदद की. थोड़ा हेर-फेर अभिलेख में भी किया गया.और इस तरह रसबाला एक दिन 'रस बानो' हो गई. उसे कैदी महिला की पुत्री के स्थान पर अनाथ बताया गया. जब किस्मत लिखने में विधाता से भूल होती आई है तो इंसानों का क्या ?
     और मुस्लिम दंपत्ति ने भी 'पाठशाला' के इस सहयोग का भारी इनाम दिया. पाठशाला में  बच्चों के लिए पीने के पानी का एक बड़ा टैंक बनवाया. हज़ारों रूपये इसमें खर्च हुए.
     अब रसबानो एक संपन्न परिवार में आ गई. उसके 'पिता' का घोड़ों और ऊंटों का बड़ा कारोबार था. एक से  एक बढ़िया नस्ल के अरबी घोड़े छोटी उम्र में खरीदे जाते थे, और उन्हें प्रशिक्षित करके ऊंचे दामों में  बेचा जाता था. पश्चिम की मांग के अनुसार बढ़िया जानवर तैयार करने में उन्हें भारी मुनाफ़ा होता था, क्योंकि ऊँट और घोड़े पूर्वी पिछड़े इलाकों में सस्ते मिल जाते थे. उनसे उन्नत किस्म के जानवरों की हायब्रिड नस्लें तैयार होती थीं. अच्छे खान-पान के साथ नफ़ासत की ट्रेनिंग उन्हें उम्दा माल बनाती थी.जबकि पूर्वी क्षेत्रों में तो इन्हें कभी चारे-पानी की कमी या दुर्भिक्ष के चलते वैसे ही छोड़ दिया जाता था, जहाँ ये कुछ औपचारिकताओं के बाद मुफ्त के माल की तरह मिल जाते थे.
     रसबानो का परिवार साल-दो साल में खाड़ी देशों में जाता रहता था.बारह साल की होने तक तो रसबानो ने अपने माँ-बाप के साथ हज यात्रा भी कर डाली. मक्का-मदीना और जेद्दाह में उसे बहुत आनंद आता था. वह अपने पिता के कारोबार को बहुत कौशल और ध्यान से देखती. अपनी माँ की तरह उसकी रूचि घर और लड़कियों वाले कामों में नहीं थी.
     परिवार इतना बड़ा था कि खुद रसबानो की माँ को भी पता नहीं था, कितने शहरों में कितने रिश्ते-नातेदार फैले हुए हैं. जहाँ जाती, रसबानो अपनों को पाती. फिर उसकी उम्र भी धीरे- धीरे ऐसी आ रही थी, जिसमें हर कोई लड़की को अपना समझता है. घर वाले चाहते हैं, कि वह दायरों में रहे, बाहर वाले चाहते हैं कि वह बेलगाम हर कहीं आती-जाती उपलब्ध रहे, और खुद मन चाहता है कि दुनियां क्यों न देखी जाय? रसबानो सोचती, कि ये मुकाम लड़कों की जिंदगी में क्यों नहीं आता ?
     रसबानो ने फिर कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा. न उसने अपनी पिछली जिंदगी के बारे में किसी से कुछ कभी पूछा, और न ही किसी ने कभी उसे कुछ बताया.
     इतना ज़रूर था, कि जब भी रसबानो भारत में अपने घर आकर वापस  लौटती, तो घर-गाँव की हर चीज़ उसे न जाने क्यों अपनी ओर खींचती. ये लगाव कैसा था, क्यों था, रसबानो कभी न जान पाती.
     हाँ, एक बार इस लगाव की सीरत, फितरत और ख़लिश किसी खुशबू की शक्ल में उसके मन के झरोखों से झांकी, जब सोमालिया से ...[जारी...]       

2 comments:

हम मेज़ लगाना सीख गए!

 ये एक ज़रूरी बात थी। चाहे सरल शब्दों में हम इसे विज्ञापन कहें या प्रचार, लेकिन ये निहायत ज़रूरी था कि हम परोसना सीखें। एक कहावत है कि भोजन ...

Lokpriy ...