Sunday, August 26, 2012

बहुत दर्द भरा है एक दिन में दो शोक-गीत गा पाना !

   बहुत साल पहले की बात है, मुंबई के यशवंत राव चव्हाण सभागृह में एक कार्यक्रम हो रहा था। मैं उन दिनों मुंबई में ही रहता था, और माधुरी, फिल्मफेयर  आदि फिल्म पत्रिकाओं में लिखने, तथा फिल्म समीक्षाओं के लिए जाने के कारण फ़िल्मी और रंगमंच से जुड़े  कार्यक्रमों में भी  उपस्थित रहा करता था। कार्यक्रम शुरू होने से पहले मैं भीतर बैठा था, और अपने एक मित्र के आने की प्रतीक्षा में लगातार हॉल के दरवाज़े की ओर  देख रहा था। मुझे यह देख कर बड़ा आश्चर्य हो रहा था कि  दरवाज़े से जो भी दाखिल होता, वह उसी दिशा में एक बार सर झुका कर नमस्कार ज़रूर करता, जिस ओर  मैं बैठा था।
   जब मेरा मित्र आ गया और मेरी उद्विग्नता समाप्त हो गई, तब मैंने पलट कर अपने दूसरी ओर  देखा। यह देख कर मेरी ख़ुशी और अचम्भे का पारावार न रहा, कि  बिलकुल मेरे बगल वाली कुर्सी पर बेहतरीन चरित्र अभिनेता एके हंगल बैठे हैं। और तब मैं समझा कि  इतने अभिवादन उस ओर  क्यों बरस रहे थे। मैंने भी तत्परता से नमस्ते की, जबकि मैं काफी देर से वहीँ बैठा था, उस ओर पीठ फेरे। कई बड़े लोगों को विनम्रता से उस ओर  झुकते देखा।
   आज वे सभी लोग जहाँ भी होंगे, ज़रूर सोच रहे होंगे- "इतना सन्नाटा क्यों है भई ?"

6 comments:

  1. manu krati ka ek or adbhut rang...ek kaal jayee purush aaj fir hame chhor gaya.

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  2. aapki baat me marmik pashchataap hai, aabhar!

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  3. आज वे सभी लोग जहाँ भी होंगे, ज़रूर सोच रहे होंगे- "इतना सन्नाटा क्यों है भई ?"

    BEAUTIFUL MEMORY

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  4. खरगोश का संगीत राग रागेश्री पर आधारित
    है जो कि खमाज थाट का सांध्यकालीन राग
    है, स्वरों में कोमल निशाद और बाकी स्वर शुद्ध लगते हैं,
    पंचम इसमें वर्जित है,
    पर हमने इसमें अंत में पंचम का प्रयोग भी किया
    है, जिससे इसमें राग बागेश्री भी झलकता है.
    ..

    हमारी फिल्म का संगीत वेद नायेर ने दिया है.
    .. वेद जी को अपने संगीत कि प्रेरणा
    जंगल में चिड़ियों कि चहचाहट से मिलती है.
    ..
    My webpage - खरगोश

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हम मेज़ लगाना सीख गए!

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