Wednesday, August 8, 2012

बहुत अच्छा लगा अजित गुप्ता जी का विचार

पिछले कुछ दिनों से मुझे महसूस हो रहा था कि हम जो भी कुछ कर रहे हैं वह किसी और को तो क्या,खुद अपने को भी आनंद नहीं दे रहा. कभी हम अन्ना की हौसला अफजाई कर रहे थे , तो एक दिन पता चला कि अन्ना अपने मिशन को छोड़ बैठे.कभी लगा , कि चलो इंतज़ार के लम्बे वर्ष बीते, अब आडवानी जी देश के आसमान में कोई नया रंग भरेंगे , तो पता चला कि आडवानी जी तो खुद चुके सो चुके कांग्रेस को भी बीता करार दे गए .उधर सुना कि सोनिया जी चुनाव नहीं लड़ेंगी. लोग मुकाबला देखने को तैयार थे ,कि मुलायम और मायावती जी साथसाथ खाने बैठ गए. नितीश जी ललकारने लगे कि न मैं खुद खाऊँ न मोदी को खाने दूं. राहुल ने कहा कि बड़ी कुर्सी को तैयार हूँ , तो लोग पूछने लगे कि छोटी पे क्या किया ?महामहिम के लिए ब्रेक के बाद ख़बरें नहीं , बल्कि ख़बरों के बाद ब्रेक है.
ऐसे में अजित गुप्ता जी ने जब कहा कि किसी अवस्था के बाद तो जीवन उद्देश्यहीन भी होना चाहिए, तो लगा कि इस से हमें ही नहीं देश को भी सुकून मिला होगा.    

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