कई बार आश्चर्य होता है कि समय के साथ-साथ बीत चुके युग कालांतर में वापस क्यों लौट आते हैं? क्या ब्रह्म-शक्ति के पास युगों के डिजाइन सीमित हैं ?
यह तो नहीं कहा जा सकता कि युग-वापसी क्यों होती है, लेकिन यह आसानी से कहा जा सकता है कि हमारे इतिहास का एक युग जल्दी ही वापस आने वाला है। आपने पढ़ा-सुना होगा कि एक समय ऐसा भी था, जब लिखने का कोई साधन नहीं हुआ करता था। छपने का तो कोई प्रश्न ही नहीं।
उस समय के हमारे कवि अपनी रचनाएं मन ही मन गुनगुना कर कंठस्थ कर लेते थे, और वे रचनाएँ यदि सुनने वालों को पसंद आतीं, तो वे भी बार-बार सुनाने का आग्रह करते हुए उन्हें याद कर लेते थे। इस तरह अच्छी रचनाएं समाज में कवि के न रहने के बाद भी बनी रह जाती थीं। वे फिर किसी किताब या कंप्यूटर में न रह कर लोगों की स्मृति और जुबां पर सवार होकर अपना अस्तित्व कायम रखती थीं।
फिर आया दूसरा युग, जिसमें लिखने, छपने के साथ-साथ तरह-तरह के संसाधनों से उन्हें सुरक्षित रखने की अपार संभावनाएं आईं।
अब सुनिए कुछ ताज़ा घटनाएं। एक शिक्षण संस्थान ने अपने यहाँ चयन के लिए कुछ विद्वानों को आमंत्रित किया। विद्वान-गण अपनी भारी-भरकम डिग्रियों और प्रकाशित पोथियों को लेकर हाज़िर हुए। साक्षात्कार के दौरान विद्वत-जनों से उनकी किताबों में दर्ज सामग्री पर चंद सवाल किये गए। विद्वान-गण बगलें झाँकने लगे। वे सामग्री के बाबत तो कुछ बता न सके, यह भी नहीं बता पाए कि उन्होंने सामग्री कहाँ-कहाँ से अपनी पोटली में भरी है।
विवश होकर उनका ज्ञान जांचने आये सज्जनों को कहना पड़ा- अच्छा, केवल वे बातें कहिये, जो आपको जुबानी याद हैं। अर्थात उनका अपना वही ज्ञान माना गया जो उन्हें याद था।
यह तो नहीं कहा जा सकता कि युग-वापसी क्यों होती है, लेकिन यह आसानी से कहा जा सकता है कि हमारे इतिहास का एक युग जल्दी ही वापस आने वाला है। आपने पढ़ा-सुना होगा कि एक समय ऐसा भी था, जब लिखने का कोई साधन नहीं हुआ करता था। छपने का तो कोई प्रश्न ही नहीं।
उस समय के हमारे कवि अपनी रचनाएं मन ही मन गुनगुना कर कंठस्थ कर लेते थे, और वे रचनाएँ यदि सुनने वालों को पसंद आतीं, तो वे भी बार-बार सुनाने का आग्रह करते हुए उन्हें याद कर लेते थे। इस तरह अच्छी रचनाएं समाज में कवि के न रहने के बाद भी बनी रह जाती थीं। वे फिर किसी किताब या कंप्यूटर में न रह कर लोगों की स्मृति और जुबां पर सवार होकर अपना अस्तित्व कायम रखती थीं।
फिर आया दूसरा युग, जिसमें लिखने, छपने के साथ-साथ तरह-तरह के संसाधनों से उन्हें सुरक्षित रखने की अपार संभावनाएं आईं।
अब सुनिए कुछ ताज़ा घटनाएं। एक शिक्षण संस्थान ने अपने यहाँ चयन के लिए कुछ विद्वानों को आमंत्रित किया। विद्वान-गण अपनी भारी-भरकम डिग्रियों और प्रकाशित पोथियों को लेकर हाज़िर हुए। साक्षात्कार के दौरान विद्वत-जनों से उनकी किताबों में दर्ज सामग्री पर चंद सवाल किये गए। विद्वान-गण बगलें झाँकने लगे। वे सामग्री के बाबत तो कुछ बता न सके, यह भी नहीं बता पाए कि उन्होंने सामग्री कहाँ-कहाँ से अपनी पोटली में भरी है।
विवश होकर उनका ज्ञान जांचने आये सज्जनों को कहना पड़ा- अच्छा, केवल वे बातें कहिये, जो आपको जुबानी याद हैं। अर्थात उनका अपना वही ज्ञान माना गया जो उन्हें याद था।
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