किसी ओलिम्पिक, कॉमनवेल्थ,एशियाई या अन्य अंतर्राष्ट्रीय खेल में हम जब खिलाड़ियों की उम्र पर गौर करते हैं, तो हम पाते हैं कि अन्य खिलाड़ी जहाँ सोलह, सत्रह, अठारह साल में अंतर-राष्ट्रीय ख्याति हासिल करने लग जाते हैं, वहीँ हमारे खिलाड़ियों की उम्र पच्चीस- छब्बीस से शुरू होती है। शायद हम बच्चों पर तो विश्वास नहीं ही करते, बड़ों को ज़रुरत से ज्यादा भरोसेमंद मानने के कायल हैं। हमारे यहाँ पच्चीस-तीस का होने पर ही ध्यान जाता है।
लेकिन यह देखना अत्यंत सुखद है कि अब हमारे बच्चे खुद इस पहेली को हल करने निकल पड़े हैं।वे खेल-दर-खेल और मुकाबला-दर-मुकाबला अपने को जोशो-खरोश से सिद्ध कर रहे हैं। हमारी युवा क्रिकेट टीम की हालिया कामयाबी इसी श्रंखला में एक आल्हादकारी पड़ाव है। ये खिलाड़ी भरपूर बधाई और प्रोत्साहन के हकदार हैं।
हम अपने युवाओं के आगे आखिर कब तक गाते रहेंगे- "बड़े अच्छे लगते हैं ..."?
अब हम पूरी विनम्रता से अपने बड़े खिलाड़ियों से भी कहना चाहेंगे कि वे इन ताज़ी हवा के झोंकों को आगे आने दें,अपने रुतबे, रसूख, पुरानी कामयाबियों का सहारा लेकर इनके रास्ते न रोकें।
लेकिन यह देखना अत्यंत सुखद है कि अब हमारे बच्चे खुद इस पहेली को हल करने निकल पड़े हैं।वे खेल-दर-खेल और मुकाबला-दर-मुकाबला अपने को जोशो-खरोश से सिद्ध कर रहे हैं। हमारी युवा क्रिकेट टीम की हालिया कामयाबी इसी श्रंखला में एक आल्हादकारी पड़ाव है। ये खिलाड़ी भरपूर बधाई और प्रोत्साहन के हकदार हैं।
हम अपने युवाओं के आगे आखिर कब तक गाते रहेंगे- "बड़े अच्छे लगते हैं ..."?
अब हम पूरी विनम्रता से अपने बड़े खिलाड़ियों से भी कहना चाहेंगे कि वे इन ताज़ी हवा के झोंकों को आगे आने दें,अपने रुतबे, रसूख, पुरानी कामयाबियों का सहारा लेकर इनके रास्ते न रोकें।
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