अब लगभग हर विद्यालय में बच्चों को कंप्यूटर ज्ञान दिया जा रहा है, चाहे कुछ व्यावहारिक कठिनाइयाँ हों। पर्यावरण भी पढ़ाया जा रहा है।
मुझे लगता है कि अब हमें मनोविज्ञान को भी एक अनिवार्य विषय बनाना होगा। बच्चों से क्षमा-याचना सहित मैं यह कह रहा हूँ, क्योंकि मैंने स्कूल जाते बच्चों के भारी-भरकम बैग को देखा है।अंग्रेजी सबको पढ़नी ही चाहिए, कानून का ज्ञान भी ज़रूरी सा हो गया है।
मैं ऐसा इसलिए कह रहा हूँ, कि आने वाले समय में आरक्षण के कारण परेशानियाँ आने ही वाली हैं। न जानने वालों को काम करने हैं, जानने वालों को दफ्तरों से बाहर रहना है। ज्यादा जानने वालों को कम पैसे में काम करना है, जातियों के आधार पर ...
छोड़िये , थोड़े में बात करें तो - सब कुछ "निराधार" चलना है। बच्चों से माफ़ी इसीलिए तो मांगनी है कि आज़ादी के पैंसठ साल बाद हम उन्हें ये परिवेश दे रहे हैं।
मुझे लगता है कि अब हमें मनोविज्ञान को भी एक अनिवार्य विषय बनाना होगा। बच्चों से क्षमा-याचना सहित मैं यह कह रहा हूँ, क्योंकि मैंने स्कूल जाते बच्चों के भारी-भरकम बैग को देखा है।अंग्रेजी सबको पढ़नी ही चाहिए, कानून का ज्ञान भी ज़रूरी सा हो गया है।
मैं ऐसा इसलिए कह रहा हूँ, कि आने वाले समय में आरक्षण के कारण परेशानियाँ आने ही वाली हैं। न जानने वालों को काम करने हैं, जानने वालों को दफ्तरों से बाहर रहना है। ज्यादा जानने वालों को कम पैसे में काम करना है, जातियों के आधार पर ...
छोड़िये , थोड़े में बात करें तो - सब कुछ "निराधार" चलना है। बच्चों से माफ़ी इसीलिए तो मांगनी है कि आज़ादी के पैंसठ साल बाद हम उन्हें ये परिवेश दे रहे हैं।
परहित मन, पुरोहित तन!
ReplyDeleteकुछ करना होगा, मिलजुलकर होगा, सोने के दिल, लोहे के पाँव, कुशल हाथ और तज़ दिमाग़ जुटेंगे, तभी होगा।
kabhi thoda samay nikaal kar sujhaaiye ki bachchon ko manovigyan me kya, aur kaise sikhaya jay?
ReplyDeleteजी, सम्बन्धित विषयों पर अपने ब्लॉग पर छिटपुट विचार रखता रहा हूँ, आपकी सुविधानुसार विस्तार से बात की जा सकती है।
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