[ मंच पर काल प्रहरी, जिजीविषा और सभी बच्चे डर से बेहोश पड़े हैं। तभी दीवार की गिरी ईंट वाली जगह से तेज़ प्रकाश के साथ एक महिला की आवाज़ आती है ]
आवाज़ - अरे, भय से सब अचेत हो गए।उठो, उठो बच्चो, उठो बहन, तुम भी बच्चों की तरह डर गईं? और काल प्रहरी जी आप भी, आपको तो बहादुर होना चाहिए !
[ एक-एक करके सब आँखें खोलते हुए उठते हैं, और आश्चर्य से आवाज़ की दिशा में देखते हैं।
पहरेदार - कौन हो तुम ? ईंट क्यों गिराई ? ठहरो मैं आता हूँ।
आवाज़ - तुम मुझे नहीं पहचानोगे, मैं कौशल्या हूँ, कौशल्या ...राम की माता, अयोध्या की रानी।
सभी - प्रणाम, प्रणाम मांजी, प्रणाम रानी साहिबा, ढोक महारानी जी, नमस्ते आंटी ...
जिजीविषा - अरे, आप ! ये मैं क्या देख रही हूँ ? बच्चो देखो हमें किसके दर्शन हुए ...
करुणा - दर्शन कहाँ हुए ? केवल आवाज़ ही तो आ रही है।
आवाज़ - बच्चो तुम्हारी बातें सुन कर मुझसे परलोक में भी रहा नहीं गया, तुम ममता को बचाने की बात कर रहे थे न? मैं भी तुम्हारे साथ हूँ।
बच्चे - [ख़ुशी से चिल्लाते हैं] ये ...ममता बचाओ मंच जिंदाबाद !
आवाज़ - तुम्हें मालूम है, मुझे अपनी आँखों से अपने पुत्र को चौदह साल के लिए जंगल में जाते हुए देखना पड़ा और मैं कुछ न कर सकी।
करुणा - आपने कुछ क्यों नहीं किया ? आप महारानी थीं, आवाज़ उठा सकती थीं, आपकी बात सुनी जाती।
विस्मय - आप बड़ी भी थीं, वो बड़े लोगों की बात माने जाने का ज़माना था ..
आवाज़ - मेरे पति महाराज दशरथ ने कैकेयी को वचन दिया था, इसलिए वे तो असहाय थे, कैकेयी ने अपने पुत्र को राजा बनाने की मांग रख दी ...
विस्मय - इसमें तो कुछ गलत नहीं है, हर माँ अपने पुत्र की तरक्की चाहती ही है।
आवाज़ - लेकिन साथ में उसने मेरे पुत्र के लिए वनवास मांग लिया, मैं कुछ न कर सकी।
करुना - आपको करना चाहिए था, आपसे पूछे बिना आपके बेटे को सौतेली माँ जंगल में कैसे भेज सकती है?
[तभी दौड़ कर काल प्रहरी ईंट उठा कर वापस दीवार में लगा देता है, आवाज़ बंद हो जाती है ]
जिजीविषा - देखा बच्चो तुमने, एक माँ ने अपने बेटे को अपनी आँखों से दूर कर दिया, केवल इसलिए, कि बच्चा अपने पिता का दिया वचन पूरा कर सके।
विस्मय - इसमें बच्चे की क्या गलती, ये तो पिता की गलती है।
जिजीविषा - हाँ,यही तो मैं कहना चाहती हूँ, कई बार माँ की ममता में कमी नहीं होती, किन्तु परिस्थिति ही ऐसी बन जाती है कि माँ को ममता का गला घोटना ही पड़ता है।
बच्चे - नहीं .. नहीं हम ऐसा नहीं होने देंगे, ममता बचाओ मंच जिंदाबाद ..
आवाज़ - अरे, भय से सब अचेत हो गए।उठो, उठो बच्चो, उठो बहन, तुम भी बच्चों की तरह डर गईं? और काल प्रहरी जी आप भी, आपको तो बहादुर होना चाहिए !
[ एक-एक करके सब आँखें खोलते हुए उठते हैं, और आश्चर्य से आवाज़ की दिशा में देखते हैं।
पहरेदार - कौन हो तुम ? ईंट क्यों गिराई ? ठहरो मैं आता हूँ।
आवाज़ - तुम मुझे नहीं पहचानोगे, मैं कौशल्या हूँ, कौशल्या ...राम की माता, अयोध्या की रानी।
सभी - प्रणाम, प्रणाम मांजी, प्रणाम रानी साहिबा, ढोक महारानी जी, नमस्ते आंटी ...
जिजीविषा - अरे, आप ! ये मैं क्या देख रही हूँ ? बच्चो देखो हमें किसके दर्शन हुए ...
करुणा - दर्शन कहाँ हुए ? केवल आवाज़ ही तो आ रही है।
आवाज़ - बच्चो तुम्हारी बातें सुन कर मुझसे परलोक में भी रहा नहीं गया, तुम ममता को बचाने की बात कर रहे थे न? मैं भी तुम्हारे साथ हूँ।
बच्चे - [ख़ुशी से चिल्लाते हैं] ये ...ममता बचाओ मंच जिंदाबाद !
आवाज़ - तुम्हें मालूम है, मुझे अपनी आँखों से अपने पुत्र को चौदह साल के लिए जंगल में जाते हुए देखना पड़ा और मैं कुछ न कर सकी।
करुणा - आपने कुछ क्यों नहीं किया ? आप महारानी थीं, आवाज़ उठा सकती थीं, आपकी बात सुनी जाती।
विस्मय - आप बड़ी भी थीं, वो बड़े लोगों की बात माने जाने का ज़माना था ..
आवाज़ - मेरे पति महाराज दशरथ ने कैकेयी को वचन दिया था, इसलिए वे तो असहाय थे, कैकेयी ने अपने पुत्र को राजा बनाने की मांग रख दी ...
विस्मय - इसमें तो कुछ गलत नहीं है, हर माँ अपने पुत्र की तरक्की चाहती ही है।
आवाज़ - लेकिन साथ में उसने मेरे पुत्र के लिए वनवास मांग लिया, मैं कुछ न कर सकी।
करुना - आपको करना चाहिए था, आपसे पूछे बिना आपके बेटे को सौतेली माँ जंगल में कैसे भेज सकती है?
[तभी दौड़ कर काल प्रहरी ईंट उठा कर वापस दीवार में लगा देता है, आवाज़ बंद हो जाती है ]
जिजीविषा - देखा बच्चो तुमने, एक माँ ने अपने बेटे को अपनी आँखों से दूर कर दिया, केवल इसलिए, कि बच्चा अपने पिता का दिया वचन पूरा कर सके।
विस्मय - इसमें बच्चे की क्या गलती, ये तो पिता की गलती है।
जिजीविषा - हाँ,यही तो मैं कहना चाहती हूँ, कई बार माँ की ममता में कमी नहीं होती, किन्तु परिस्थिति ही ऐसी बन जाती है कि माँ को ममता का गला घोटना ही पड़ता है।
बच्चे - नहीं .. नहीं हम ऐसा नहीं होने देंगे, ममता बचाओ मंच जिंदाबाद ..
खरगोश का संगीत राग रागेश्री पर आधारित है जो कि खमाज थाट का सांध्यकालीन राग है, स्वरों में कोमल निशाद और बाकी स्वर शुद्ध लगते हैं,
ReplyDeleteपंचम इसमें वर्जित
है, पर हमने इसमें अंत में पंचम का प्रयोग भी किया है, जिससे
इसमें राग बागेश्री भी झलकता
है...
हमारी फिल्म का संगीत वेद नायेर ने दिया है.
.. वेद जी को अपने संगीत कि प्रेरणा जंगल में चिड़ियों कि चहचाहट से मिलती है.
..
My blog post - संगीत
shukriya!
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