Friday, August 24, 2012

अब न फीका न खट्टा, अब तो कड़वा है आम

     ये किसी लंगड़ा ,दसहरी, कलमी, राजापुरी, हापुस या तोतापुरी आम के स्वाद की बात नहीं हो रही।ये बात उस आम की है, जो आदमी के उदर में नहीं जाता, बल्कि उसके नाम के आगे लगता है।इसके लगने से आदमी "आम आदमी" कहलाता है।
     इस आम आदमी ने अब तक बहुत मज़े कर लिए। हमेशा हरेक की हमदर्दी इसी के साथ रहती है। ट्रेनें देर से चल रही हैं, बेचारा आम आदमी तकलीफ पा रहा है। मंहगाई बढ़ रही है, बेचारा आम आदमी पिस रहा है। बेकारी बढ़ रही है, बेचारा आम आदमी रोटी को मोहताज हो रहा है। शिक्षण संस्थाएं फीस बढ़ा रही हैं, आम आदमी की पढ़ाई मुहाल हो रही है।
     ये बात आपको 'जन-विरोधी' लग रही होगी? चलिए, इसे बंद कर देते हैं। दूसरी बात करें।
     कोई-कोई इस बात को लेकर उत्साहित है कि  अब जल्दी ही चुनाव आने वाले हैं। कुछ लोग आशान्वित हैं कि  लोग गरीबी, मंहगाई, भ्रष्टाचार, अव्यवस्था से पूरी तरह ऊब चुके हैं, वे अब तस्वीर बदल देंगे। कुछ लोग आशान्वित हैं कि  अपने इलाके में थोड़े नोट, थोड़ी मदिरा और थोड़े वादे बांटेंगे और कुर्सी फिर उनकी। भाई, वोटर कोई आसमान से उतरा हुआ फ़रिश्ता थोड़े ही है, आखिर है तो आम आदमी ही !  

4 comments:

  1. आम आदमी की सरल और सटीक परिभाषा |
    तभी तो एक आम गरीब आदमी वोटिंग के टाइम पर सबसे ज्यादा अमीर बन जाता है| मानते हैं कि नहीं...

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  2. Aapki baat bilkul sahi hai Dost,yah ek din ki ameeri hi fir aam -aadmi ko hamesha gareeb banaye rakhti hai.Koshish keejiye ki pareeksha ke din yah aam-aadmi bahke nahin.

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  3. आम आदमी के आम दुख.... :(

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  4. Aapka dhanywad, aam aadmi ke aam dukhon men "khaas aadmiyon ke khaas sukh" hamaare samay ki vidambna hai.

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