Saturday, July 21, 2012

रमज़ान शुरू, चहके बाज़ार महका आलम

मुबारक दिन आलसी नहीं होते, वे तयशुदा समय पर चले ही आते हैं। ये ही दिन इंसान के कठिन दिनों में सँभलने का संबल भी होते हैं।
   कभी-कभी लगता है कि  बादल जैसे इस बार नाराज़ हैं। जो मौसम फुहारों से भीगा होना चाहिए था, वह तप रहा है। कुछ दिन पहले सारी  दुनिया को सहलाने वाली खबर अखबारों में थी, कि  अमेरिका के कई राज्यों में भी भीषण सूखे की आशंका है। पानी बचाने के तमाम सन्देश विज्ञापनों में हैं, फिर भी वह बच नहीं रहा। जो है, वह ठीक से बंट नहीं रहा। विज्ञापनों ने अपनी विश्वसनीयता खुद खोई है।
   जब शाहरुख़, आमिर, सलमान या ऋतिक विज्ञापनों में आते हैं, तो विज्ञापित चीज़ का रुतबा नहीं बढ़ता, बल्कि खुद उनका रुतबा बढ़ता है। और जो विज्ञापन इन महामानवों के बिना बनते हैं, उन्हें फ़िलर माना जाता है, मुकम्मल विज्ञापन नहीं।   

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