Saturday, July 14, 2012

थोड़ा और खोदें, हर खदान से निकलता ही है कुछ न कुछ

   लाला रामस्वरूप ने बच्चों को पढ़ाने- लिखाने पर खर्च करने में कभी कोताही नहीं की। यही कारण  था कि   सात बच्चों में से तीन, महिपाल,धनेश और सतीश ने इंजीनियरिंग की पढ़ाई  की। वे जानते थे कि  छोटी जगह रह कर यह सब न हो सकेगा, इसलिए जिला मुख्यालय अलीगढ़ में रहने की व्यवस्था की गई। वहां उनके एक पुत्र ने मुस्लिम विश्व विद्यालय से क़ानून की पढ़ाई की। सामान्य परिपाटी के विरुद्ध दोनों पुत्रियों रामदेवी और विद्या  को भी पढ़ने  भेजा गया।
     ज्ञानार्जन से घर के माहौल में आधुनिकता का पुट आने लगा। बड़े पुत्र का घर का नाम जहाँ धार्मिक आस्थाओं के चलते 'द्वारका' रखा गया था वहीँ तीसरे पुत्र बन्नो के बाद चौथे तक आते-आते दयाभान  का घर का नाम 'मिस्टर' रखा गया।
     "विद्या" नाम इस घर को खूब फला। छोटी बेटी विद्या के साथ-साथ  महिपाल की धर्मपत्नी भी विद्यावती ही थी।जगदीश का विवाह शकुन्तलादेवी से हुआ, धनेश का केवल 17 वर्ष की आयु में मधु से, दयाभान का पुष्पा  से,और सतीश का भी पुष्पा नाम की, शकुंतला की छोटी बहन से हुआ।
     बाद में नौकरियों के चलते सब बच्चे अलग-अलग शहरों में चले गए।
     राजस्थान में आये जगदीश के चार पुत्र और दो पुत्रियाँ हुए। बड़ी पुत्री रानी  को लाला राम स्वरुप की इच्छा के कारण  संस्कृत की शिक्षा दी गईऔर उसका विवाह अनिल से हुआ । छोटी पुत्री पूनम  का विवाह एक अत्यंत प्रतिष्ठित व्यवसायी रवि  से हुआ। दो पुत्र विनोद और अनुरोध  इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर इंजीनियर बने, जिनका विवाह क्रमशः अशोकरानी  और अंजली से हुआ और  एक पुत्र  कृषि वैज्ञानिक बना जिसका विवाह मृदुला से हुआ । चौथे प्रबोध ने, शिक्षा को डिग्रियों में न बाँट कर केवल रुचिकर अध्ययन के तहत कला, वाणिज्य, विज्ञान, विधि, साहित्य, भाषा, पत्रकारिता की शिक्षा भी ली, और देश के अलग-अलग हिस्सों में, अलग-अलग तरह की नौकरियां भी कीं। एक अत्यंत मेधावी, वैज्ञानिक,प्रशासक और शिक्षाविद लड़की रेखा  से विवाह किया।
     गड्ढा खोदते-खोदते ज़मीन से पानी निकल आया और पानी में अपना ही अक्स दिख रहा है, भूमिगत जल बेहद शुद्ध होता है न ! अब बंद करता हूँ, अपना ही अक्स कोई कब तक देखे?
          

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