Friday, July 27, 2012

इतिहास का एक बोध-वाक्य "प्रिवेंशन इज बैटर देन क्योर"

   नहीं नहीं, 'पूर्व - सावधानी इलाज से बेहतर है' यह  जुमला इतिहास का नहीं है। हम यदि ग्लोबल सन्दर्भों में बात करें, तो यह आज भी कई जगह प्रचलित है। हाँ, कुछ चुनिन्दा देशों में अब इसे मार -भगाया गया है। मैं  यह नहीं कह रहा कि हम उन्हीं देशों में हैं, लेकिन यदि आपको ऐसा लगता है तो ग़लती मेरी नहीं है।
   यदि कोई अपनी सारी कमाई किसी नशे में उड़ा दे, तो हम 'नशा' बनाने वाले, नशा बेचने वाले, नशे के लिए उकसाने वाले को कुछ नहीं कहते। यहाँ तक कि  नशा करने वाले तक को कुछ नहीं कहते। हाँ, जब उस नशे से आदमी मरने लगता है, उसका घर-परिवार उजड़ने लगता है, तब रुदाली बन कर उसके द्वार पर सामाजिक संस्थाएं भी आती हैं, और सरकार भी।
   अभी कल तक "गुटखा" बनाने वाले मोटा मुनाफा कमा रहे थे, अखबारों में बड़े-बड़े सितारों को लेकर लुभावने विज्ञापन दे रहे थे, यहाँ तक कि  सरकारों को भरपूर चंदे दे रहे थे, बड़े-बड़े राष्ट्रीय आयोजनों को प्रायोजित कर रहे थे, अब अचानक सब मिल कर गुटखा खाने वालों का मुंह पकड़ने दौड़ पड़े। कदम जब भी उठा, बधाई !  

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