पक्षियों का सुरक्षा-मनोविज्ञान बहुत दृढ़ होता है, वे खतरा सूँघने की अद्भुत क्षमता रखते हैं, इसी से समूह में रहना पसंद करते हैं। हल्की सी सरसराहट भी उन्हें चौकन्ना कर देती है। इसी से वे अपने समूह से अलग जाना केवल विशेष परिस्थितियों में ही पसंद करते हैं, जैसे-भूख लगने पर, शरीर में कोई असुविधा होने पर। ऐसे में वे अपने को सब की बराबरी करने में सक्षम नहीं पाते।
लेकिन एक ही पेड़ पर सबके बैठने और दूसरे पेड़ पर किसी के न जाने के पीछे एक छोटा सा कारण और भी है। पेड़ों को दाता ही कहा जाता है, लेकिन इन मानव-मित्रों में भी कुछ अपवाद हैं। कुछ पेड़ मनुष्य या वातावरण को कोई लाभ नहीं पहुंचाते, बल्कि हानिकारक ही होते हैं। विलायती बबूल, युक्लिप्टस आदि ऐसे पेड़ हैं, जो कम से कम जल-विहीन क्षेत्रों में तो ज़मीन को नुक्सान ही पहुंचाते हैं। ये ज़मीन का पानी सोख लेते हैं, और बदले में कुछ भी लाभकारी नहीं देते। "सप्तपर्णी"भी ऐसा ही एक पेड़ है। कुछ क्षेत्रों में तो इन पेड़ों को लगाने पर सरकारों ने भी प्रतिबन्ध लगा दिया है। इनके पत्ते, फल,या फूल कोई उपयोगिता नहीं रखते। मृतावस्था में आते ही इन पर चींटियाँ या दीमक भी जल्दी लगती है।
अब पंछियों ने बोटनी या वनस्पति-शास्त्र न पढ़ा हो तो क्या, पर्यावरण में अपने मित्रों को तो वे भी पहचानते ही हैं !
लेकिन एक ही पेड़ पर सबके बैठने और दूसरे पेड़ पर किसी के न जाने के पीछे एक छोटा सा कारण और भी है। पेड़ों को दाता ही कहा जाता है, लेकिन इन मानव-मित्रों में भी कुछ अपवाद हैं। कुछ पेड़ मनुष्य या वातावरण को कोई लाभ नहीं पहुंचाते, बल्कि हानिकारक ही होते हैं। विलायती बबूल, युक्लिप्टस आदि ऐसे पेड़ हैं, जो कम से कम जल-विहीन क्षेत्रों में तो ज़मीन को नुक्सान ही पहुंचाते हैं। ये ज़मीन का पानी सोख लेते हैं, और बदले में कुछ भी लाभकारी नहीं देते। "सप्तपर्णी"भी ऐसा ही एक पेड़ है। कुछ क्षेत्रों में तो इन पेड़ों को लगाने पर सरकारों ने भी प्रतिबन्ध लगा दिया है। इनके पत्ते, फल,या फूल कोई उपयोगिता नहीं रखते। मृतावस्था में आते ही इन पर चींटियाँ या दीमक भी जल्दी लगती है।
अब पंछियों ने बोटनी या वनस्पति-शास्त्र न पढ़ा हो तो क्या, पर्यावरण में अपने मित्रों को तो वे भी पहचानते ही हैं !
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