Sunday, July 29, 2012

इतिहास बदलने की अनुमति है ![दो ]

जिजीविषा -मैं तो तुम्हें कालू कहूँगी। तुम्हारा घर कहाँ है?
पहरेदार  - मैं भी तुम्हें विषा कहूँगा। मेरा कोई घर नहीं है, मैं तो अनंत काल से इसी तरह चक्कर लगा कर इस     दीवार की रक्षा कर रहा हूँ।
जिजीविषा  - इसकी रक्षा की क्या ज़रुरत? ये क्या सोने की दीवार है? कौन लूटेगा इसे? गन्दी।..[छूती है ]
पहरेदार  - अरे छुओ नहीं, ये इतिहास की दीवार है, जो कुछ बीत जाता है, वह इस दीवार के पार चला जाता है।
जिजीविषा  - देखूं, क्या-क्या चला गया।
पहरेदार  - अरे-अरे ठहरो, तुम जीते-जी उस पार नहीं जा सकतीं। जो मर जाता है वही उस पार जाता है।
जिजीविषा  - ये मरघट है क्या ?
पहरेदार  - नहीं-नहीं ये इतिहास है, जो लोग, जो समय, जो बातें बीत जाती हैं, वह उस पार चली जाती हैं। चाहे जीवन हो, चाहे कला हो, चाहे संगीत, चाहे राजनीति, सब कुछ उधर चला जाता है।
जिजीविषा  - ये कचराघर है क्या?
पहरेदार  - "चुप"!यह पवित्र इतिहास की पावन समाधि है,
जिजीविषा  - समाधि है तो तुम यहाँ क्या कर रहे हो? क्या यहाँ से निकल कर कोई भाग जायेगा?
पहरेदार  - तुमने ठीक कहा, कभी-कभी ऐसा हो जाता है। यहाँ से कोई निकलने की कोशिश करता है।
जिजीविषा  - तुम इस दीवार को ऊंचा क्यों नहीं कर लेते? थोड़ी ईंटें और लगा लो।
पहरेदार  - ये ईंटें नहीं,इतिहास हो चुकी आत्माएं हैं, कभी-कभी कोई आत्मा फिर से दुनिया में आने के लिए छटपटाती है।
जिजीविषा  - सच? फिर तुम क्या करते हो?
पहरेदार  - इसीलिए रखवाली करता हूँ, जब दीवार के पीछे लाल-अँधेरा छाता है, तो इसका अर्थ  है कि कोई आत्मा असंतुष्ट है, और वह दीवार के इस ओर  आना चाहती है। [तभी कोलाहल के साथ लाली छाती है, और जिजीविषा डर  कर बेहोश हो जाती है। कालप्रहरी उसे सम्हालते हुए टॉर्च लेकर दीवार की ओर  भागता है।..   

1 comment:

  1. खरगोश का संगीत राग रागेश्री पर आधारित है जो कि खमाज
    थाट का सांध्यकालीन राग है, स्वरों में कोमल निशाद और
    बाकी स्वर शुद्ध लगते हैं, पंचम इसमें वर्जित
    है, पर हमने इसमें अंत में पंचम
    का प्रयोग भी किया है, जिससे इसमें राग
    बागेश्री भी झलकता है.

    ..

    हमारी फिल्म का संगीत वेद नायेर ने
    दिया है... वेद जी को अपने संगीत कि प्रेरणा जंगल में चिड़ियों कि चहचाहट से मिलती है.

    ..
    Here is my web page - संगीत

    ReplyDelete

हम मेज़ लगाना सीख गए!

 ये एक ज़रूरी बात थी। चाहे सरल शब्दों में हम इसे विज्ञापन कहें या प्रचार, लेकिन ये निहायत ज़रूरी था कि हम परोसना सीखें। एक कहावत है कि भोजन ...

Lokpriy ...