Thursday, January 12, 2012

यह इन बातों का युग नहीं है फिर भी

अभी पूरे सात महीने बाकी हैं जब भारत को अपना नया राष्ट्रपति चुनना है. राष्ट्रपति का पद अभी ख़ाली भी नहीं है.बाकायदा ससम्मान चुनी गई महामहिम प्रतिभा पाटिल इस पद को सुशोभित कर रही हैं. ऐसी भी दूर-दूर तक कहीं कोई संभावना नहीं है कि वे किसी भी कारण से अपने पद पर बने रहने में असमर्थ होंगी.
लेकिन मीडिया को उतावली है. ठीक वैसी ही उतावली, जैसी किसी भूखे इंतजार करते हुए व्यक्ति को होटल में मेज़ पर खाना खाते दूसरे व्यक्ति को  देख कर हो सकती है, कि कब यह उठे और मैं बैठूं.
मीडिया ने अपने बेसिरपैर के कयास लगाने शुरू कर दिए हैं. मीडिया को 'प्रणव मुखर्जी' इस दौड़ में सबसे आगे भागते दिखाई दे रहे हैं. सभी को याद होगा, कि मीडिया ने ऐसी ही उतावली एक बार तब भी दिखाई थी, जब इंदिरा गाँधी की हत्या के बाद देश की बागडोर संभाल सकने वाले शख्स की अटकलें लगाईं जा रही थीं. तब भी प्रणव  जी का नाम बेवज़ह उछाला गया था.इसका नतीजा यह हुआ कि "वुड बी" हाईकमान की भ्रकुटियाँ अकारण प्रणव जी के लिए तन गईं, और उनका ग्राफ कांग्रेस में इस तेज़ी से गिरा कि बेचारे प्रणव जी को दोबारा अपनी साख बनाने के लिए लगभग दूसरा जन्म ही लेना पड़ा. एक बार तो वे दरकिनार कर ही दिए गए थे.
मीडिया के ऐसे कयास प्रणव जी को नुक्सान पहुँचाने वाले तो  हैं ही, ये वर्तमान राष्ट्रपति को भी अपमानित करने वाले हैं. ऐसे मीडिया कर्मी 'लूज़ शंटिंग' के लिए खुले नहीं छोड़े जाने चाहिए. ये कभी हामिद अंसारी को राष्ट्रपति बना रहे हैं तो कभी डॉ कर्ण सिंह को. इनसे श्रीमती पाटिल इस पद पर बैठी देखी नहीं जा रहीं.
   

2 comments:

  1. इन्हें देश की गरिमा से क्या?

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  2. aapke vichar bahut din baad sune. dhanywad.

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