दुनिया दिनोंदिन यांत्रिक होती जा रही है. अब आदमी जितना पुराना हो उतना ही नौसिखिया.जितना नया हो उतना ही सक्षम. वे दिन गए, जब बुजुर्ग लोग बैठ कर नए लोगों को ज्ञान की बात बताते थे.
कभी-कभी लगता है, यह तो अच्छा है, नई पीढी अपने आप बिना पुरानी पीढी की मदद लिए ही आगे बढ़ रही है. पर दूसरी तरफ कभी-कभी यह भी लगता है कि आज जो कुछ ज्ञान उपलब्ध है वह उसी पीढी की मेहनत का ही तो परिणाम है जो अब 'देकर' ओझल हो गई. ऐसे में इस उपलब्धि का श्रेय केवल नई पीढी को कैसे दिया जाय?
किसी बगीचे में डालियों पर कूद-कूद कर फल खाने वाले बन्दर को भला यह कहाँ मालूम होता है कि पेड़ किसने लगाया, इसमें पानी किसने दिया, इसकी रखवाली किसने की?
लेकिन बन्दर फल न खाए तो फिर गुज़रे ज़माने के लोगों की मेहनत भी किस काम की?
कभी-कभी लगता है, यह तो अच्छा है, नई पीढी अपने आप बिना पुरानी पीढी की मदद लिए ही आगे बढ़ रही है. पर दूसरी तरफ कभी-कभी यह भी लगता है कि आज जो कुछ ज्ञान उपलब्ध है वह उसी पीढी की मेहनत का ही तो परिणाम है जो अब 'देकर' ओझल हो गई. ऐसे में इस उपलब्धि का श्रेय केवल नई पीढी को कैसे दिया जाय?
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लेकिन बन्दर फल न खाए तो फिर गुज़रे ज़माने के लोगों की मेहनत भी किस काम की?
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