नया साल आते ही और नयी चीज़ों के साथ-साथ दीवारों के कलेंडरों को भी बदला जाता है. कुछ लोग श्रद्धा के अतिरेक में इन कलेंडरों पर भगवान माने जाने वाले देवी-देवताओं के चित्र छाप देते हैं. फिर अनन्य श्रद्धा के साथ ही इन्हें लगाया जाता है. वर्ष भर ये धार्मिक भावना का पोषण भी करते रहते हैं. मुझे याद है, मेरा एक मित्र कमरे में जब कपडे बदलता था, तब भी वह भगवान का चित्र उलट देता था. यह एक प्रकार से उसके अमूर्त विश्वास की मूर्त परिणिति ही थी.
ऐसे में जब साल बीत जाता है, तब यह समस्या आती है कि अब इस तथाकथित भगवान का क्या किया जाय ?यदि चित्र नया सा या सुरक्षित है तो उसे पूजा-स्थल पर रख दिया जाता है. पर हर चित्र के लिए ऐसा नहीं किया जा पाता.ऐसे में अपने भगवान का निस्तारण एक उलझन बन जाता है. क्या आपके पास इस उलझन का कोई समाधान है? या फिर कोई ऐसा तर्क, जो इन "भक्तों"को आसानी से समझाया जा सके, और ये अपने भगवान के बेवजह कसूरवार न बनें.
ऐसे में जब साल बीत जाता है, तब यह समस्या आती है कि अब इस तथाकथित भगवान का क्या किया जाय ?यदि चित्र नया सा या सुरक्षित है तो उसे पूजा-स्थल पर रख दिया जाता है. पर हर चित्र के लिए ऐसा नहीं किया जा पाता.ऐसे में अपने भगवान का निस्तारण एक उलझन बन जाता है. क्या आपके पास इस उलझन का कोई समाधान है? या फिर कोई ऐसा तर्क, जो इन "भक्तों"को आसानी से समझाया जा सके, और ये अपने भगवान के बेवजह कसूरवार न बनें.
hume to yahi samjhaya gaya hai ki bhagvaan ka koi bhi chitra yadi upyog nahi karna hai to use pavitra agni ke havaale kar dena chahiye.paani me bhi daalen to paani in par use kiye camicals ke karan dushit ho jaata hai.
ReplyDeleteसार्थक , सामयिक पोस्ट, आभार.
ReplyDeleteकृपया मेरे ब्लॉग पर भी पधार कर अपना स्नेहाशीष प्रदान करें