एक पुरानी फिल्म का गीत है-आने से उसके आये बहार, जाने से उसके जाये बहार...आजकल जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल के आयोजक सलमानरुश्दी को लेकर लगभग इसी तरह की कशमकश में हैं. ताज्जुब इस बात का है, कि लिटरेचर फेस्टिवल क्या कोई राजनैतिक सम्मलेन है जिसमें पांच राज्यों में होने वाले चुनावों की वोट-गणित देख कर मेहमान बुलाये जायेंगे?
एक ओर तो यह फेस्टिवल पिछले कुछ वर्षों में "साहित्य" को युनिवर्सल समझने की प्रेरणा देने का काम करता रहा है, दूसरी ओर खुद ही संकीर्णता की दलदल में फंसने की कगार पर है. इसे ऐसे विवादों से बचाए रखने की पूरी कोशिश होनी चाहिए.
एक ओर तो यह फेस्टिवल पिछले कुछ वर्षों में "साहित्य" को युनिवर्सल समझने की प्रेरणा देने का काम करता रहा है, दूसरी ओर खुद ही संकीर्णता की दलदल में फंसने की कगार पर है. इसे ऐसे विवादों से बचाए रखने की पूरी कोशिश होनी चाहिए.
No comments:
Post a Comment