हिंदी के विद्वान आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने किसी गाकर भीख मांगने वाले से कोई दोहा सुना.उसने कुछ और दोहे भी सुना डाले. संयोग से उसे लोक-परंपरा वश यह भी याद था कि यह दोहा किसी मलिक मोहम्मद का लिखा हुआ है. शुक्लजी ने मलिक मोहम्मद के नाम-गाँव की पड़ताल करते हुए जायसी का पता लगा लिया और आज जायसी की गिनती इतिहासके श्रेष्ठ कवियों में होती है. अर्थात बीते हुए दिन किसी न किसी रूप में अपनी झलक दिखा ही देते हैं.
हमारे इतिहास के ज़्यादातर कवियों में वे लोग हैं जो किसी न किसी राजा या सुल्तान के महलों में उसकी वंदना करते हुए रहे. इतिहास के गर्भ में इनकी सनद इसलिए महफूज़ रही कि इनका लिखा महलों और मज़बूत किलों में था. उसे समय की गर्द ढांप नहीं पाई.बहुत से बेहतरीन शायर और कवि इसलिए इतिहास तले दब कर रह गए होंगे किउनके उड़ते पन्नों को किसी महल या दुर्ग की मज़बूत दीवार नसीब नहीं हुई. बेहतर यह होगा कि आज किसी भी कलमकार को पढ़ते हुए पहले दो मिनट की ख़ामोशी उन अभागे कलम-नवीसों के लिए रखी जाये जिन्हें किसी शाह की छत्र-छाया हासिल नहीं थी.
कल ऐसा ही श्रद्धा भरा मौन अवाम सलमान रुश्दी जैसे उन अदीबों के लिए रखेगा जिनके लिखे लफ़्ज़ों को महज़ इसलिए मंच नसीब नहीं हुआ कि उस दौरान संसदों और विधान-सभाओं के लिए राजनीतिबाज़ चुने जा रहे थे, और कलमकार के बोलने भर से उनके वोटों की बरसात में खलल पड़ने का अंदेशा था.
हमारे इतिहास के ज़्यादातर कवियों में वे लोग हैं जो किसी न किसी राजा या सुल्तान के महलों में उसकी वंदना करते हुए रहे. इतिहास के गर्भ में इनकी सनद इसलिए महफूज़ रही कि इनका लिखा महलों और मज़बूत किलों में था. उसे समय की गर्द ढांप नहीं पाई.बहुत से बेहतरीन शायर और कवि इसलिए इतिहास तले दब कर रह गए होंगे किउनके उड़ते पन्नों को किसी महल या दुर्ग की मज़बूत दीवार नसीब नहीं हुई. बेहतर यह होगा कि आज किसी भी कलमकार को पढ़ते हुए पहले दो मिनट की ख़ामोशी उन अभागे कलम-नवीसों के लिए रखी जाये जिन्हें किसी शाह की छत्र-छाया हासिल नहीं थी.
कल ऐसा ही श्रद्धा भरा मौन अवाम सलमान रुश्दी जैसे उन अदीबों के लिए रखेगा जिनके लिखे लफ़्ज़ों को महज़ इसलिए मंच नसीब नहीं हुआ कि उस दौरान संसदों और विधान-सभाओं के लिए राजनीतिबाज़ चुने जा रहे थे, और कलमकार के बोलने भर से उनके वोटों की बरसात में खलल पड़ने का अंदेशा था.
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