इन दिनों चुनाव आयोग अपने होने को सिद्ध करने में लगा है. मायावतीजी के 'हाथी' निशाने पर हैं. एक संजीदा और ज़िम्मेदार विभाग की तरह चुनाव आयोग ने घोषणा करदी कि सार्वजानिक स्थान पर हाथियों की भव्य और विशाल मूर्तियों को बर्दाश्त नहीं किया जा सकता, क्योंकि एक तो चुनाव सर पर हैं और दूसरे हाथी मायावतीजी की पार्टी बहुजन समाज पार्टी का चुनाव चिन्ह है. माजरा यह है कि इस घोषणा से चुनाव आयोग अपनी बुद्धिमत्ता को सिद्ध नहीं कर पा रहा क्योंकि मायावतीजी के हाथी के इर्द-गिर्द मुलायम की सायकिल तो शहरों और गाँवों में घूम ही रही है, कांग्रेस का "हाथ" भी जन-जन की कलाई पर चस्पां है. और फिलहाल चुनाव आयोग के पास इतने दस्ताने नहीं दीखते कि आयोग मुल्क के इस सबसे आबाद प्रदेश के सारे रहवासियों के हाथ ढांप सके. फिरभी आयोग मुंहकी खाने को तैयार नहीं है. वह हाथियों को चादर ओढ़ाने की जुगत में लगा है. वह चाहता है कि भीषण सर्दी में लोग उसके इस कदम को उसके 'पशुप्रेम' के रूप में देखें. लेकिन लोग हैं कि उसे नक्कार-खाने में तूती से ज्यादा अहमियत देने को तैयार ही नहीं हैं. बसपा तो उसकी ऐसी अनदेखी कर रही है कि मायावतीजी कहीं चुनाव वाले दिन वोट देने हाथी पर बैठ कर ही न चली आयें. तर्क-शास्त्र के सारे पोथे तो उनके साथ हैं ही. सोनियाजी 'हाथ' शॉल में ढक कर थोड़े ही आएँगी.तो आखिर आयोग क्या कहकर [कुछ लोग खाकर भी कह रहे हैं] मायावतीजी को रोकेगा?
प्रकाशित पुस्तकें
उपन्यास: देहाश्रम का मनजोगी, बेस्वाद मांस का टुकड़ा, वंश, रेत होते रिश्ते, आखेट महल, जल तू जलाल तू
कहानी संग्रह: अन्त्यास्त, मेरी सौ लघुकथाएं, सत्ताघर की कंदराएं, थोड़ी देर और ठहर
नाटक: मेरी ज़िन्दगी लौटा दे, अजबनार्सिस डॉट कॉम
कविता संग्रह: रक्कासा सी नाचे दिल्ली, शेयर खाता खोल सजनिया , उगती प्यास दिवंगत पानी
बाल साहित्य: उगते नहीं उजाले
संस्मरण: रस्ते में हो गयी शाम,
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अंधेर नगरी चोपट राजा
ReplyDeleteआपने बहुत अच्छे सवाल उठाये हैं.
अच्छी सुलझी प्रस्तुति.
maine aapko dhanywad diya tha, n jane kyon dikhai nahin diya?
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