कुछ समय पहले जब सरकार ने यह घोषणा की थी कि भारत में सभी को प्रामाणिक पहचान पत्र दिए जायेंगे, तो सबका खुश होना स्वाभाविक था. क्योंकि राशन कार्डों की प्रामाणिकता जगजाहिर है. जब यह पत्र बनने शुरू हुए तब भी अच्छा लगा कि इनके लिए कोई ज्यादा पेचीदा प्रणाली नहीं है और यह आसानी से बन रहे हैं. लेकिन शायद पेचीदा प्रणाली न होना ही इन की विश्वसनीयता के लिए चुनौती बन गया. देखते-देखते ख़बरें आने लगीं कि कई अवांछित तत्व भी धडाधड यह कार्ड बनवाए ले रहे हैं. यहाँ तक कि तथाकथित 'बांग्लादेशी' घुसपैठिये भी इनके ज़रिये खुलेआम देश की नागरिकता लेते देखे गए. इनके लिए लगी लम्बी कतारों ने इनके लिए नौकरी पेशा वर्ग को दफ्तरों से छुट्टी लेने को मजबूर कर दिया. अपनी पढाई के लिए शहर छोड़ कर गए बच्चों के लिए यह पहचान पत्र बनवाना ना-मुमकिन हो गया.दूसरी ओर कहीं कुछ न करने वाले निठल्ले लोगों के लिए इन्हें लेना सुगम हो गया. देखते-देखते व्यस्त भारत तो इनके लिए चक्कर काटता देखा जाने लगा, और निठल्ले भारत के लिए यह बाएं हाथ का खेल हो गए.
लेकिन खुश किस्मती से यह हकीकत समय रहते सामने आ गई. देखें, अब इसके लिए क्या हल निकालती है सरकार, ताकि इनकी विश्वसनीयता बनी रहे, और वास्तविक नागरिक इनके लिए अकारण धक्के न खाएं.
लेकिन खुश किस्मती से यह हकीकत समय रहते सामने आ गई. देखें, अब इसके लिए क्या हल निकालती है सरकार, ताकि इनकी विश्वसनीयता बनी रहे, और वास्तविक नागरिक इनके लिए अकारण धक्के न खाएं.
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