Saturday, January 14, 2012

जड़ता तोड़ने,जुआ खेलने,अम्बर मथने और रिश्ते टटोलने का पर्व

सूरज रास्ता बदल रहा है. क्या यह कोई छोटी बात है? सूरज का तो सातवाँ घोडा तक धरती पर खासी अहमियत रखता है. पिछले कई दिनों से बर्फीले मौसम से जिंदगी में आई जड़ता आज की धूप में  कसमसा कर टूटने वाली होती है. जिंदगी से उदासीन लोग नए दांव-पेंचों के लिए फिर से पांसे फेंकने को आतुर हो उठते हैं. आसमान में पतंगें उडती हैं. युवा पीढी जैसे अन्तरिक्ष को नयी उमंगों के लिए जगाती है. महकते व्यंजनों से होती अतिथियों की अगवानी रिश्तों की रेत बुहार कर नजदीकियों की राह बनाती है.ऐसे मनता है मकर संक्रांति का पर्व.
  

No comments:

Post a Comment

हम मेज़ लगाना सीख गए!

 ये एक ज़रूरी बात थी। चाहे सरल शब्दों में हम इसे विज्ञापन कहें या प्रचार, लेकिन ये निहायत ज़रूरी था कि हम परोसना सीखें। एक कहावत है कि भोजन ...

Lokpriy ...