दो शब्द कहने की परंपरा बहुत पुरानी है. मराठी भाषा में इन्हें चार शब्दों के रूप में कहा जाता है. मज़े की बात यह है कि "दो शब्द" के नाम पर अक्सर जो कुछ कहा जाता है, वह बहुत लम्बा-चौड़ा होता है. प्राय दो शब्द किसी 'मुख्य अतिथि, विशिष्ट अतिथि या विशिष्ट वक्ता' से कहलवाए जाते हैं, अतः उन्हें रोकने-टोकने की न तो कोई प्रथा होती है और न ही ज़रुरत. क्योंकि दो शब्द कहने सुनने वाले जानते हैं, कि जो कुछ कहा जायेगा, सुना जायेगा. सुना न भी जाये, कम से कम सहा तो जायेगा.
हाथ कंगन को आरसी क्या?
ये देखिये, मैं ही आपसे कितना और क्या-क्या कह गया. और ये कोई दो या चार शब्दों की बात नहीं है, बल्कि चार सौ बार की बात है.
अपनी इस ४०० वी पोस्ट में आपको क्रिसमस की बधाई दे रहा हूँ. और शुभकामनायें दे रहा हूँ आने वाले नए साल २०१२ की.
साथ ही मैं अपने सभी मित्रों, शुभ-चिंतकों और पाठकों से यह भी निवेदन करना चाहता हूँ कि अब मैं नए वर्ष में ही पुनः हाज़िर हो सकूँगा.
हाथ कंगन को आरसी क्या?
ये देखिये, मैं ही आपसे कितना और क्या-क्या कह गया. और ये कोई दो या चार शब्दों की बात नहीं है, बल्कि चार सौ बार की बात है.
अपनी इस ४०० वी पोस्ट में आपको क्रिसमस की बधाई दे रहा हूँ. और शुभकामनायें दे रहा हूँ आने वाले नए साल २०१२ की.
साथ ही मैं अपने सभी मित्रों, शुभ-चिंतकों और पाठकों से यह भी निवेदन करना चाहता हूँ कि अब मैं नए वर्ष में ही पुनः हाज़िर हो सकूँगा.
आपको हार्दिक बधाई!
ReplyDeleteaapko bhi badhai aur bahut dhanywad. sath hi yah salah bhi deejiye ki rajnaitik vishyon ko harek ke maanav-adhikaar ke roop men dekh kar, in par tippani ki jay ya fir inhen 'desh'hit men taul kar dekha jana chahiye? main naye saal ki pahli tippani aapki is ray ko janne ke baad hi karna chahta hoon.
ReplyDeleteबधाई हो आपको इस मुकाम की।
ReplyDeleteसबसे पहले तो ज़र्रानवाज़ी का आभार। और गूगल का भी कि इस बार मेरी टिप्पणी ग़ायब नहीं हुई। आपको राय देना छोटे मुँह बड़ी बात होगी, फिर भी आपके आदेश का सम्मन करते हुए - मैं समझता हूँ कि मानवाधिकार और देश-हित इन दोनों के ऊपर मानवता का हित आना चाहिये। राष्ट्रहित की ज़िम्मेदारी प्रशासन और सरकार को लेनी चाहिये। हम उनकी सहायता कर सकते हैं परंतु पहल तो उन्हें ही करनी पड़ेगी। और मानवाधिकारों के नाम पर आतंकवादियों के टुकड़ों पर पलने वालों से लेकर तानाशाही के चमचों तक सब मिलकर कितनी कुत्ता-घसीटी कर रहे हैं, वह तो हम सभी जानते हैं। हर स्थिति में मानवता का दामन ही तार-तार हो रहा है। हम और कुछ न भी कर सकें तो थोड़ा जन-जागरण तो कर ही सकते हैं।
ReplyDeleteइस्कॉन प्रकरण पर आपकी पोस्ट्स सबसे अलग थीं। जहाँ कुछ लोग किसी न किसी बहाने से असंतोष भड़काने में लगे हैं, वहाँ एक सेन वॉइस सुनना कानों को बहुत भला लगता है।
मेरी राय में मानव मात्र का हित किसी भी अन्य विषय/विचारधारा से पहले है। पहले भी एक टिप्पणी की थी, जो दिखी और फिर ग़ायब हो गयी। आपने पूछा इसका आभार और नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें!
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