Wednesday, December 21, 2011

हमारी और हमारे ग्रंथों की महानता याद दिला दी रशिया ने...'थैंक्स' रशिया के लिए

हम एक हो गए. हमें अहसास हो गया कि "गीता" वास्तव में महान ग्रन्थ है.यह मांग बिलकुल जायज़ है कि इसे "राष्ट्रीय ग्रन्थ" घोषित किया जाय.हमारे मस्तिष्कों की पुनश्चर्या हो गई कि हम अपने राष्ट्रीय चिन्हों की गरिमा के प्रति सचेत हों.
अब लगे हाथों हमें रशिया को यह भी बता देना चाहिए, कि हम गीता को किस कार्य में लेते हैं. हमारी अदालतों में गवाह के तौर पर आने वाले हर  शख्स को 'गीता' पर हाथ रख कर यह कसम खानी पड़ती है कि वह जो कुछ कहेगा, सच कहेगा. वह फिर क्या कहता है, यह हमारी चर्चा का विषय नहीं है.
हमारी अदालतों की गवाहियों में सत्य कितना प्रतिशत होता है, यह अलग से किसी शोधार्थी का विषय है.
फ़िलहाल हमारे पास एक नया मुद्दा तो आ ही गया है. हमारे पास वैसे भी मुद्दों का अकाल रहता है.
रशिया ने आज तो गीता पर टिप्पणी की है, कल वह हमारे गवाहों के बयानों पर टिप्पणी करेगा, परसों हो सकता है कि वह हमारी अदालतों में लंबित मुक़दमे भी गिनने लगे. धीरे-धीरे उसकी रूचि हमारे मामलों में बोलने की हुई तो वह हमारी और भी किताबें पढ़ने लगेगा.
वैसे भारतीय साहित्य का रुसी अनुवाद तो बहुत पहले से होने लगा था? गीता का नंबर अब आया है, या गीता पढ़ी अब गई है? बहरहाल, रशिया में पढ़ तो ली गई.         

3 comments:

  1. ब्लॉग पर आगमन और समर्थन प्रदान करने का आभार, धन्यवाद.

    सार्थक, सामयिक पोस्ट, आभार.

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  2. aapke vicharon se sambal mila, jaise sardi men kambal mila.

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