Thursday, December 22, 2011

पथिक तुम भूमि पर बैठो, निहारो दूर से महलों की शोभा,

वैसे तो दिल्ली पूरी ही आलीशान है,पर कुछ इमारतें तो यकीनन भव्य हैं. राष्ट्रपति भवन, संसद भवन, लालकिला...ये फेहरिस्त आसानी से पूरी नहीं होगी.
एक समय था कि कर्नाटक के विधानसभा भवन को बंगलुरु के दर्शनीय स्थलों में अहम स्थान प्राप्त था. आज भी है.
जब महाराष्ट्र विधानसभा भवन बन कर तैयार हुआ तो तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी ने इसका उदघाटन करते हुए कहा था कि इस आलीशान भवन में , भविष्य में न जाने कितने अहम फैसले लिए जायेंगे.
मध्य प्रदेश का विधानसभा भवन पहाड़ की चोटी  पर जब खड़ा हुआ तो लोग भूल गए कि इस राज्य को कभी पिछड़ा कहा जाता था.
राजस्थान के विधानसभा भवन ने रजवाड़ों की महलिया शान को जीवंत कर दिया.
लगभग हर प्रदेश में अरबों की लागत से विधायकों के लिए  तिलिस्मी इमारतों का निर्माण हुआ.
जनता ने इन्हीं को देख कर अरबों की गिनती सीखी.
लेकिन कहते हैं कि समंदर का सारा जल मिल कर भी कभी एक सीप की प्यास नहीं बुझा पाता.
देश के लिए एक कानून बनवाना है. लेकिन इनमें से कोई इमारत शायद काम न आये. देशवासियों को नीली छतरी तले आज़ाद मैदान में ही बैठना पड़े.  
     

2 comments:

  1. .

    इस सार्थक पोस्ट के लिए बधाई स्वीकारें.

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हम मेज़ लगाना सीख गए!

 ये एक ज़रूरी बात थी। चाहे सरल शब्दों में हम इसे विज्ञापन कहें या प्रचार, लेकिन ये निहायत ज़रूरी था कि हम परोसना सीखें। एक कहावत है कि भोजन ...

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