Saturday, December 10, 2011

इंसान में क्या घट जाता है, क्या बढ़ जाता है, यह मापना कठिन है

कल एक कार्यक्रम में जाने का अवसर मिला, जहाँ 'मानव अधिकार दिवस' से सम्बंधित कार्यक्रम का श्रीगणेश राज्य के मुख्यमंत्री कर रहे थे.
वहीँ मेरे एक मित्र से भी मिलना हुआ जो पहले कभी राज्य के पुलिस महानिरीक्षक रह चुके हैं, और अब मानव अधिकार आयोग के सदस्य हैं.हमने काफी देर तक मानव अधिकार पर चर्चा की.
वहीँ मेरे एक और मित्र ने मुझसे कहा कि मैं अपने उन  मित्र को, जो मानव अधिकार आयोग के सदस्य हैं,  उनके एक कार्यक्रम में आने के लिए कहूँ जो शीध्र ही आयोजित होने जा रहा है.
मैंने उन दोनों का परिचय करवा कर उनकी ओर से निवेदन कर दिया.
कार्यक्रम के आयोजक मित्र ने उनसे पूछा कि उन्हें लेने के लिए कार कब और कहाँ भेजी जाय? मुख्य अतिथि के तौर पर उन्हें बुलाया जा रहा था. उन्होंने विनम्रता से कहा- उन्हें लेने के लिए कार भेजने की कोई ज़रुरत नहीं है, केवल किसी एक आदमी को भेज दिया जाय जो उन्हें समारोह-स्थल तक का रास्ता बता दे.
उनका वार्तालाप चल रहा था, और मैं सोच रहा था कि जब वे राज्य के पुलिस महानिरीक्षक थे, तब उनके आने पर क्षेत्र के आई.जी., एस.पी. और अन्य अधिकारियों की गाड़ियों का काफिला तो साथ चलता ही था, ढेरों पुलिस कर्मियों की फौज भी उपलब्ध होती थी.
  

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