Monday, December 12, 2011

अभी तो थानेदार के लिए हल्ला है, चोरों को कब ढूढेंगे?

 ये जो सड़कों पे शोर है, ये तो "थानेदार" को लाने का है. थानेदार लाओ...थानेदार लाओ... अच्छा और मज़बूत थानेदार लाओ...ईमानदार थानेदार लाओ... सरकारी नहीं, सरोकारी थानेदार लाओ.
पहले तो थानेदार आएगा, फिर कानून बनाएगा, घुड़की देगा, ललकारेगा, और तब कहीं जाकर चोरों पर बुरी नज़र डालेगा. और उसके बाद जाकर चोर पकड़ में आयेंगे.
लेकिन तब तक? तब तक तो काफी देर हो चुकी होगी. चोरों के पेट में माल पच चुका होगा.हीरे-जवाहरात  को चोर  तितर-बितर कर चुके होंगे. नोटों को विदेशी बैंकों में पहुंचा चुके होंगे.
खैर, अभी न सही, कभी न कभी तो थानेदार की भर्ती होगी?
लेकिन दुःख इस बात का है कि थानेदार की भर्ती इतनी आसानी से नहीं होगी. उसके लिए चौहत्तर  साल के अन्ना हजारे को लाखों निर्दोष- बेगुनाहों को लेकर जेलें भरनी होंगी.
इस देश में कंस-वध की भूमिका जेल भरने से ही क्यों शुरू होती है?
रावण को  मारने के लिए अशोकवाटिका में सीता को  ही क्यों कैद में जाना पड़ता  है?
क्या सही कानून बनाने के लिए किसी बोधि-वृक्ष के नीचे बैठे सिद्धार्थ को ज्ञान नहीं हो सकता?    

2 comments:

  1. चोरों का क्या है - एक ढूंढो हज़ार मिलते हैं. चोरों के बीच में एक थानेदार ढूँढना तो गज़ब की बहादुरी है|

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  2. bahaduri ke liye 'medals' tayyar rakhiye, doondhne nikal to chuke hain. aapko kafi din baad punah dekh kar yakeen ho gaya ki kisi takniki badlaav nehi samvad men badha dali hai.aabhar.

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